
जन्माष्टमी हमारे देश का अत्यंत लोकप्रिय पर्व है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल जन्माष्टमी कह देने मात्र से भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का बोध हो जाता है।सनातन धर्म मे आस्था रखने वाले हर आयू वर्ग के लोग इस पर्व को पूरे उत्साह से मनाते है।
सदियों पहले धरती पर
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि 12 बजे पूर्ण ब्रह्म भगवान श्री कृष्ण का अवतरण हुआ था। ये दस अवतारो मे प्रमुख तथा सोलह कलाओं से परिपूर्ण थे इसलिए भगवान श्री कृष्ण को पूर्ण ब्रह्म कहा जाता है। इस दिन को ही जन्माष्टमी के रूप मे मनाते है। इस दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए । व्रत -उपवास का संकल्प लेकर निराहार या फलाहार करके श्री कृष्ण का चिंतन वंदन करते नृत्य गीत भजन आदि सहित उत्साह पूर्वक दिन को व्यतीत करना चाहिए ।
जन्माष्टमी के दिन रात्रि जागरण का सर्वाधिक महत्व है। संपूर्ण दिन भगवान की कथा, विष्णु सहस्र नाम स्तोत्र का पाठ तथा श्रीमद् भागवत महापुराण के श्री कृष्ण अवतार की कथा आचार्य-ब्राह्मणो को बुला कर उनसे सुनना चाहिए।
आधी रात को किसी भी सिद्ध स्थल, मंदिर या घर पर ही भगवान श्री कृष्ण के बालरूप (लड्डू गोपाल) का षोडषोपचार पूजन किसी वैदिक विद्वान ब्राह्मण के सहयोग से या यथा शक्ति स्वयं करना चाहिए। इस तरह भक्ति पूर्वक आराधना करते हुए दिन व्यतीत करना चाहिए ।
भारत देश के हृदय प्रदेश छत्तीसगढ़ मे कृष्ण जन्माष्टमी को आठे कन्हैया के नाम से भी जाना जाता है। आठे कन्हैया अर्थात आठ कृष्ण ।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों मे इस दिन घर के पूजा स्थल पर दीवार मे भगवान कृष्ण के आठ मुर्ती बनाकर उसकी पूजा करते है। आठ कृष्णो की पूजा के दो कारण हो सकते है।
पहला यह कि भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ था ।
दूसरा यह कि कृष्ण को मिलाकर उनके भाइयों की संख्या आठ है।
आठ अंक के साथ भगवान कृष्ण के सम्बंध के बारे में पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि….
अष्टमी तिथि
आठवे पहर ,
आठवाँ सन्तान,
आठवाँ अवतार,
आठ भाई ,
16100 रानी ( 1+6+1=8)
आठ पटरानी,
आठ सखिया,
125 वर्ष तक धरती पर रहे ,
(1+2+5 = 8)
आठ प्रकार के अपशकुन देखे कंश ने कृष्ण जन्म के समय।
आठों पहर का नींद खराब हो गया था उनका।
8-8 अक्षरों के तारक मंत्र –
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।
भगवान् *श्री कृष्ण* को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।
उत्तर प्रदेश में कृष्ण ,गोपाल ,गोविन्द, नन्दलाल इत्यादि नामो से जानते है।
राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।
महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।
उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।
बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।
दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।
गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।
असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।
मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।
गोविन्द या गोपाल में “गो” शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया…जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।
श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन “वासुदेव” के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..
श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।
श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे,
अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।
श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था।
क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।
श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।
दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।
श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था।
कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।

श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।
श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था। श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे। श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था।
श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।
श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।
श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।
श्री कृष्ण के अनुसार गौ हत्या करने वाला असुर है और उसको जीने का कोई अधिकार नहीं।
श्री कृष्ण अवतार नहीं थे बल्कि अवतारी थे….जिसका अर्थ होता है “पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्” न ही उनका जन्म साधारण मनुष्य की तरह हुआ था और न ही उनकी मृत्यु हुयी थी।