रायपुर। राखी बंधने को लेकर कई तरह की बात सामने आ रही है। पंचांग अलग अलग होने के कारण पंडित भी अलग-अलग तर्क देरहे हैं। कुछ 11 तारीख को रक्षाबंधन को सही बता रहे हैं तो कुछ भद्रा होने के कारण 12 तारीख के दिन को रक्षाबंधन के लिएश्रेष्ठ मानते हैं।
डोंगरगढ़ धाम के पंडित युवराज शर्मा के अनुसार सावन पूर्णिमा तिथि दो दिन पड़ने और भद्रा के कारण इस बार रक्षाबंधन के त्योहार की तारीख को लेकर लोगों में संशय है। दो दिन पूर्णिमा तिथि होने के बाद भी राखी बांधने के लिए शुभ मुहूर्त का समय भी बेहद कम है।
रक्षा बन्धन बृहस्पतिवार दिनांक 11 अगस्त को
रक्षा बन्धन के लिये शुभ समय – 8.52 रात से प्रारंभ
भद्रा प्रारंभ समय-10:38 प्रात:
भद्रा अन्त समय – 8:52रात
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 11को 10.38 बजे सुबह
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 12को 7:16 बजे सुबह
11 अगस्त को भद्रा समाप्त होने के बाद बांधी जाएगी राखी,
हृषिकेश पंचांग के अनुसार 11 अगस्त (गुरुवार) की रात 8.52 बजे भद्रा की समाप्ति के बाद राखी बांधी जायेगी। वहीं, बनारसी पंचांग के अनुसार 11 अगस्त की रात लगभग साढ़े आठ बजे भद्रा के खत्म होने से लेकर अगले दिन शुक्रवार को सुबह 7:16 बजे तक पूर्णिमा तिथि की उपस्थिति में रक्षाबंधन का शुभ कार्य किया जायेगा। वहीं, मिथिला पंचांग के आधार पर 12 अगस्त (शुक्रवार) को बहन अपने भाई को राखी बांधेगी। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार भद्रारहित पूर्णिमा में दिन-रात किसी भी समय राखी बांधी जा सकती है।
भद्रारहित काल में राखी बांधने से सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। सावन शुक्ल पूर्णिमा को रक्षाबंधन पर ग्रह-गोचरों का अद्भुत संयोग बना है. 11 अगस्त को व्रत की पूर्णिमा के दिन पूरे दिन सिद्ध योग के साथ श्रवण नक्षत्र रहेगा फिर स्नान-दान की पूर्णिमा 12अगस्त को धनिष्ठा नक्षत्र के साथ सौभाग्य योग एवं सिद्ध योग भी विद्यमान रहेंगे। इस प्रकार सावन की पूर्णिमा पर अद्भुत संयोग का निर्माण हो रहा है। इस उत्तम संयोग में राखी बांधने से ऐश्वर्य और सौभाग्य की वृद्धि होती है। शास्त्रों में भद्रारहित काल में ही राखी बांधने का प्रचलन है। भद्रारहित काल में राखी बांधने से सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।
भद्रा काल में नहीं बांधी जाती है भाई की कलाई पर राखी
भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है। इसके अलावा अन्य कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य भद्रा में करना वर्जित है। इससे अशुभ फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। जिस तरह से शनि का स्वभाव क्रूर और क्रोधी है, उसी प्रकार से भद्रा का भी है। इस वजह से इस समय शुभ कार्य वर्जित माने जाते है।
अतः दिनांक 11 गुरुवार रात्रि 8:52 से दिनांक 12 शुक्रवार को प्रातः 7:16 उदयातिथि पूर्णिमा मानकर पूरा दिन केवल— राहु काल प्रातः 10.30 से दिन 12 बजे को छोड़कर रक्षाबंधन पर्व मनाया जा सकता है।
महामाया मंदिर के पण्डित मनोज शुक्ला कहते हैं कि इस बार रक्षाबंधन को लेकर कई प्रकार के सन्देश वायरल हो रहा है। लोगो को भ्रमित नहीं होना चाहिए। 11 अगस्त गुरुवार को पूर्णिमा और भद्रा दोनों ही एक साथ सुबह 10.38 बजे से आरम्भ हो रही है। भद्रा रात्रि 8.52 तक है। और पूर्णिमा 12 अगस्त शुक्रवार को सुबह 7.5 तक है। शास्त्रों में नियम है कि भद्राकाल में रक्षाबंधन नही करना चाहिये।
सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है जिसमे सुबह 10.38 के पूर्व या भद्रा पाताल लोक में होने के कारण या भद्रा पुच्छ में रक्षाबंधन करने का सलाह दिया जा रहा है जो कि उचित व शास्त्र सम्मत नही है।
11 तारीख की रात को 8.52 बजे से रक्षाबंधन कर सकते है। रात्रि काल में रक्षाबंधन कर पाना हर किसी के लिये सम्भव तथा व्यवहारिक भी न हो। इसलिये सभी राखियां रात के समय उपरोक्त मुहूर्त काल मे भगवान को अर्पण कर देवें। दूसरे दिन अर्थात 12 तारीख शुक्रवार को उदया तिथि पूर्णिमा में ही है ।
इसलिये भगवान में चढ़ाएं गये राखियों को भाई को बांधे।
वहीं दूसरी ओर आचार्य रमा किशोर मिश्रा के अनुसार 11 को भद्रा 10.38 बजे मकर राशि में प्रवेश कर रही है जो कि पाताल लोक में है। अतः मृत्यु लोक में इसका कोई भी फल नहीं होगा। इस कारण लोग 10: 38 पर सारा दिन रक्षाबंधन मना सकते है।