
रायपुर। बिना गुरु के आशीष के इस जीवन में सफल होना असंभव है। गुरु का सद् सानिध्य हमें उपहार की तरह मिला है। आज गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर हम आपके साथ तीन शिक्षाप्रद कहानियों को लिख रहे हैं।ये आपके जीवन में गुरु का होना और उनके होने से आपके जीवन में क्या बदलाव आता है।
एक उदाहरण आप से साझा कर रहा हूँ कि कैसे एक गुरु आपके जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं।गुरु नदी के दो पाट के समान है जो आपको अपने बहते हुए जीवन में गति और अनुशासन प्रदान करते हैं। इसी बात को हम आपसे तीन प्रसिद्ध कहानियों के माध्यम से विस्तार में बता रहे हैं।
गुरु की भक्ति – आज्ञाकारी शिष्य अरुणि
प्राचीन काल में घौम्य नामक एक आश्रम में एक ऋषि रहते थे जो अपने आश्रम में अपने शिष्यों को शिक्षा देने का कार्य करते थे वे अक्सर अपने शिष्यों से कहा करते थे मुसीबत चाहे कितनी भी बड़ी क्यू न हो कभी भी मुसीबत से डटकर भागना नही चाहिए और मुसीबत का डटकर सामना करना चाहिए, अपने गुरु की यह बात उस आश्रम में अपने गुरु के सबसे प्रिय शिष्य अरुणि ने यह बात अपने मन में बैठा लिया था।
बरसात के दिनों की बात है हल्की बारिश भी शुरू हो गयी थी तो गुरुदेव ने अरुणि से कहा देखो तुम खेतो पर चले जाओ कोई पानी से मेढ टूट गया हो तो उसे बाध देना ताकि अधिक पानी के बहाव से फसले ख़राब न हो।
इसके बाद अरुणि खेत पर गया इतने में बारिश बहुत तेज से भी होने लगी थी जिसके कारण पानी के तेज बहाव से खेत की मेढ टूटी पड़ी थी और पानी बहुत तेजी से खेतो में जा रहा था इसके बाद तुरंत अरुणि ने मिटटी को काटकर मेंढ पर डालना शुरू किया लेकिन तेज बहाव के कारण मिट्टी भी पानी के साथ बह जा रहा था।

अरुणि जितना प्रयास करता उतना बार असफल होता जा रहा था फिर अंत में अरुणि को अपने गुरु की बात याद आ गया की कभी भी मुसीबत से भागना चाहिए फिर इसके बाद अरुणि पानी रोकने के लिए उसी मेंढ पर लेट गया और बरसात काफी देर तक रुकी नही जिसके चलते अरुणि को नीद आ गया।
काफी देर हो जाने के बाद जब अरुणि आश्रम पर नही लौटा तो गुरुदेव अपने शिष्यों के साथ खेत पर पहुहे तो देखे की अरुणि मेंढ के बजाय खुद ही लेता हुआ है गुरूजी को यह देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ और अरुणि के द्वारा सहे कष्टों को याद करके अरुणि को गले से लगा लिया और जीवन में हमेसा सफल होने का आशीर्वाद दिया।
कहानी से शिक्षा :
इस कहानी से हमे यही शिक्षा मिलती है की जीवन में चाहे कितनी भी बड़ी समस्या क्यू न आये हमे कभी भी समस्याओ से डरकर भागना नही चाहिए और बडो के द्वारा दी गयी अच्छी बाते को अपने जीवन का मार्गदर्शन समझते हुए उन्हें पालन करते हुए हमेसा आगे बढ़ते रहना चाहिए।
एकलव्य की गुरुदक्षिणा की कहानी
महाभारत काल में एकलव्य नाम का बहादुर लड़का था जिसके पिता हिरण्यधनु हमेसा एकलव्य को जीवन में आगे बढने की सलाह दिया करते थे और कहते थे की यदि परिश्रम करोगे तो निश्चित इस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान पा सकते हो, अपने पिता की बातो को मानकर एकलव्य धनुष विद्या सिखने के लिए गुरु द्रोणाचार्य के पास गया लेकिन द्रोणाचार्य ने धनुष विद्या सिखाने से साफ़ मना कर दिया जिसके पश्चात एकलव्य दुखी मन से अपने पिता के पास आया और सब बात बता दिया।
तो एकलव्य की बाते सुनकर एकलव्य के पिता ने कहा की हमे भगवान मिलते है क्या, लोग मूर्ति बनाकर ही पूजा करते है तुम भी अपने गुरु की मूर्ति बनाकर अपनी धनुष विद्या शुरू करो और इसके पश्चात अपने पिताजी के कहे अनुसार धनुष विद्या प्रारम्भ कर दिया अपने गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति से प्रेरणा से लेकर मन में एकाग्रता के साथ एकलव्य धनुष विद्या सिखने लगा और फिर ऐसे एकलव्य धनुष विद्या में आगे बढने लगा।
एक बार की बात है इसी दौरान गुरु द्रोणाचार्य अपने पांड्वो और कौरवो शिष्यों के साथ जंगल में गुजर रहे थे की अचानक कुत्ते की आवाज सुनकर उसी वन में स्थित एकलव्य ने आवाज को निशाना बनाकर बाण छोड़ दिया जो सीधा बाण से कुत्ते का मुह भर गया।
यह सब देखकर गुरु द्रोणाचार्य बहुत ही आश्चर्यचकित हुए और वे एकलव्य के पास पहुचे और बोले तुमने यह सब कैसे कर लिया तो एकलव्य ने अपनी सारी बात बता दी और बता दिया की आपको हमने अपना गुरु मान लिया है।
यह सब बाते सुनकर गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का वचन याद आ गया और फिर एकलव्य से कहा की तुमने तो मुझे अपना गुरु तो मान लिया लेकिन गुरु दक्षिणा कौन देंगा यह बाते सुनकर एकलव्य ने कहा जो आपको चाहिए वो बता दे मै अवश्य ही आपको गुरुदक्षिणा दूंगा।
यह बात सुनकर गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से दाए हाथ का अंगूठा मांग लिया, इसके बाद एकलव्य ने एक पल बिना विचार करते हुए अपने गुरु के चरणों में अपना अंगूठा काटकर अर्पण कर दिया और इस प्रकार एकलव्य फिर कभी बाण नही चला सकता था।
लेकिन धन्य है ऐसी गुरुभक्ति जिसके चलते एकलव्य हमेसा के लिए अपने त्याग और बलिदान से अमर हो गया।
कहानी से शिक्षा :
गुरु हमे चाहे किसी भी रूप में मिल सकते है उनका हमे सम्मान कभी कम नही करना चाहिए।
शिष्य की परीक्षा
रामानुजचार्य गुरु शठकोप स्वामी के शिष्य थे एक बार स्वामी जी ने रामानुजचार्य को ईश्वर प्राप्ति का रहस्य बताया लेकिन स्वामी जी ने रामानुजचार्य को यह भी निर्देश दिया की इसे किसी को न बताये, परन्तु ईश्वर प्राप्ति ज्ञान मिलने के पश्चात रामानुजचार्य ने इस ज्ञान को लोगो में बाटना शुरू कर दिया और फिर इस पर स्वामी जी बहुत ही क्रोधित हुए और रामानुजचार्य से कहा की “ तुम मेरे बताये गये आज्ञा का उल्लघंन कर रहे हो और मेरे द्वारा ज्ञान को लोगो में युही बाँट रहे हो, तुम्हे पता होना चाहिए की यह अधर्म है और इसके बदले तुम्हे पाप भी लग सकता है और जानते हुए भी तुम अधर्म कर रहे हो”।
यह सब बाते सुनकर रामानुजचार्य अपने गुरु से बोले “हे महाराज जैसा की आप जानते है एक वृक्ष में फल फुल छाया लकडिया सबकुछ होने के बाद भी यह लोगो के लिए त्याग कर देता है फिर भी वृक्ष को कभी भी अपने इन कार्यो पर पश्चाताप नही होता है तो फिर भला मै इस ज्ञान को लोगो में बाट भी दू तो लोगो को ईश्वर प्राप्ति का रास्ता मिलेगा जिससे लोगो को आनदं की प्राप्ति होगी तो ऐसे में इस महान कार्य के लिए मुझे नर्क में भी जाना पड़े तो मुझे कोई फर्क नही पड़ता है”।
रामानुजचार्य की यह बाते सुनकर स्वामी जी अपना गुस्सा शांत करते हुए बोले की तुम्हारे इस समाज सेवा की लालसा को देखकर आज मुझे विश्वास हो गया की मेरे द्वारा प्राप्त ज्ञान तुम्हे देकर सही किया है अब तुम समाज में जाकर इस ज्ञान का प्रचार प्रसार करो जिसे मुझे भी आनंद की अनुभूति प्राप्त होगी।
कहानी से शिक्षा :
यदि हमे कोई ज्ञान प्राप्त होता है तो उस ज्ञान को अपने तक सिमित न रखते हुए समाज के कल्याण और भलाई के लिए लोगो में उस ज्ञान को बाटना चाहिए क्यूकी हम सभी जानते है की ज्ञान बाटने से बढ़ता ही है कभी घटता नही है।
तो आप सबको गुरु शिष्य की ये तीन कहानियां कैसी लगी,प्लीज हमे जरुर बताये।