मध्य प्रदेश में भारी भीड़ के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने एंट्री की थी। प्रदेश में लगभग 5 दिन चली इस यात्रा के दौरान राहुल गाँधी ने केंद्र और राज्य सरकार को निशाने पर रखा। कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल की यह यात्रा मालवा और ग्वालियर चंबल में पार्टी की जमीन मजबूत करेगी। कांग्रेस की इस उम्मीद का आधार प्रदेश में यात्रा के दौरान भारी भीड़ उमड़ी थी। हालाँकि यह भीड़ पार्टी कार्यकर्ताओं की थी या आमजन भी थे, यह स्पष्ट नहीं है। राहुल की पिछली यात्रा के बाद हुए विधानसभा चुनाव में नतीजे उलट आए। प्रदेश के जिस मालवा क्षेत्र से राहुल की यात्रा गुजरी थी, वहां बीजेपी और मजबूती के साथ सत्ता में लौटी। अब सवाल है कि राहुल गांधी की यात्रा का लोकसभा चुनाव में प्रदेश पर कितना असर दिखाई देगा?
भारत जोड़ो न्याय यात्रा के तहत राहुल गांधी लगातार चल रहे हैं। कभी गाड़ी पर भी सवार होते हैं और आम लोगों से भी मुलाकात करते हैं। जिस राहुल पर कभी गांधी परिवार और कांग्रेस का युवराज होने का टैग लगा था। वह लंबी सड़क नापकर साबित करने में जुटा है कि वह सिर्फ चांदी का चम्मच पकड़ने वालों में से नहीं है। जरूरत पड़ी तो संघर्ष की लाठी भी थाम सकता है। लेकिन, क्या यह संघर्ष वाकई राहुल गांधी को फल दे रहा है। न्याय यात्रा से पहले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले थे। उसका आंकलन करेंगे तो शायद अंदाजा हो जाएगा कि यात्रा से फायदा किसका और नुकसान किसका। कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करने के लिए यात्रा का सहारा लिया गया। लोकसभा चुनाव में घटते-घटते कांग्रेस इस हाल में पहुंच गई है कि पार्टी के पास मध्य प्रदेश में फिलहाल सिर्फ एक सीट बची है।
राहुल गांधी की यात्रा ने मध्य प्रदेश में धौलपुर के रास्ते से प्रवेश किया। जिन लोकसभा सीटों से होते हुए यात्रा गुजरी उन 6 सीटों में मुरैना, ग्वालियर, गुना-शिवपुरी, राजगढ़, उज्जैन और रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीटें शामिल रही। इस पूरे रास्ते राहुल गांधी लोगों से मिले, चर्चा की और सभाएं भी की। इस पूरी यात्रा का फोकस कांग्रेस के कोर वोटर आदिवासी मतदाताओं पर रहा। विधानसभा चुनाव में इस वोटर ने भी शायद कांग्रेस का साथ नहीं दिया। आदिवासी वोटर्स को रिझाने के लिए राहुल की बदनावर में बड़ी सभा करवाई गई। राहुल की इस यात्रा को लेकर बीजेपी कोई असर नहीं मान रही है।
मध्य प्रदेश में राहुल गांधी की यात्रा का क्या असर होता है? क्या आदिवासी कांग्रेस के साथ वफादारी निभाता है? क्या कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीत सकेगी? क्या कांग्रेस पिछली बार जितनी सीटें भी हासिल कर सकेगी। क्या कांग्रेस मध्य प्रदेश में अपनी इकलौती सीट बचा सकेगी? इसका क्रेडिट राहुल गांधी की यात्रा को तो नहीं जाएगा, क्योंकि यात्रा के रूट में छिंदवाड़ा शामिल नहीं रहा। विधानसभा के आंकड़े तो यही बताते हैं कि पिछली यात्रा से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिला। इस बार की यात्रा भी क्या बेनतीजा रहती है? ये भी चुनावी नतीजों के बाद ही समझा जा सकेगा।