कोरोना वायरस के प्रसार के बारे में नया अध्ययन सामने आया है। इसके मुताबिक अगर परिवार का एक सदस्य कोरोना संक्रमित हो जाए तो जरूरी नहीं है कि उस परिवार के सभी सदस्यों को कोरोना हो। इस संबंध में भारतीय जनस्वास्थ्य संस्थान ने अध्ययन किया है। अध्ययन की रिपोर्ट पता चला है कि परिवार के एक सदस्य के कोविड-19 संक्रमित हो तो भी घर में साथ रहने वाले 80 से 90 फीसदी सदस्यों को यह बीमारी नहीं होती है। यह जानकारी संस्थान के निदेशक दिलीप मावलंकर ने दी।
उन्होंने कहा कि नए अध्ययन से संकेत मिलता है कि परिवार के अन्य सदस्यों में शायद इस बीमारी के प्रति किसी प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गयी हो। उन्होंने कहा कि यह धारणा कि सभी के कोरोना की चपेट में आने का खतरा है, सही नहीं हो सकती। यह भी कहना कि महज कुछ मिनट के लिए कोरोना वायरस के संपर्क आने से हम संक्रमित हो जायेंगे गलत है। यदि ऐसा होता तो क्यों उसी परिवार के सारे लोगों में कोविड-19 नहीं होता। उन्होंने कहा, कुछ ऐसे परिवार हैं जहां सभी सदस्य संक्रमित हैं, लेकिन ऐसे परिवार बहुसंख्य नहीं हैं। ऐसे भी परिवार हैं जहां एक व्यक्ति की कोविड-19 से मौत हो गयी लेकिन कोई अन्य सदस्य संक्रमित नहीं है।
उन्होंने कहा कि यह अध्ययन कोविड-19 के पारिवारिक संक्रमण के विषय पर वैश्विक रूप से प्रकाशित 13 शोधपत्रों की समीक्षा पर आधारित है जो दर्शाता है कि परिवार में किसी एक सदस्य के कोविड-19 संक्रमित हो जाने के बाद उसके 80-90 फीसद सदस्यों को यह बीमारी नहीं हुई। इससे संकेत मिलता है कि परिवार के अन्य सदस्यों में शायद इस बीमारी के प्रति किसी प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई हो।
‘घरेलू संपर्क में कोविड-19 की माध्यमिक मारक दर: व्यवस्थित समीक्षा’ नामक इस अध्ययन में समीक्षा से गुजरे 13 में से ज्यादातर शोधपत्रों से पता चलता कि परिवार में एक सदस्य से दूसरे सदस्य में संक्रमण की दर (माध्यमिक संक्रमण दर) महज 10 से 15 फीसद है। संस्थान के संकाय सदस्यों कोमल शाह और दीपक सक्सेना के साथ मिलकर संयुक्त रूप से यह अध्ययन लिखने वाले मावलंकर ने कहा कि केवल तीन ऐसे शोधपत्र थे जो 30 फीसद या उससे अधिक की माध्यमिक संक्रमण दर दर्शाते हैं। यह अध्ययन हाल ही में ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड के त्रैमासिक जर्नल ऑफ मेडिसीन में प्रकाशित हुआ है। मावलंकर ने कहा कि इन शोधपत्रों में शामिल भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के शोधपत्र में परिवार में एक सदस्य से करीब आठ फीसद सदस्यों में संक्रमण फैलने की बात कही गयी है।
उन्होंने कहा, कुछ अध्ययनों में पति और पत्नी के बीच संक्रमण का विस्तार से अध्ययन किया गया है जो 45 से 65 फीसद दर्शाया गया हैं। जिन मामलों में बिस्तर साझा किया गया, वहां भी संक्रमण शत प्रतिशत नहीं है। उन्होंने कहा कि परिवार के वयस्क सदस्य से बच्चे में संक्रमण कम होता है जबकि वयस्क से बुजुर्गों में ज्यादा होता है और यह भी 15-20 फीसद है। मावलंकर ने कहा, विभिन्न लोगों में इस वायरस के प्रति अलग अलग प्रतिरोधक क्षमता होती है। परिवार में हम एक दूसरे से दूरी नहीं रखते, न ही मास्क लगाते हैं। लक्षण सामने आने से लेकर जांच तक करीब तीन से पांच दिन का अंतर होता है जिसका मतलब है कि परिवार के सभी सदस्य इस वायरस के संपर्क में आए। लेकिन तब भी सभी संक्रमित नहीं होते।