फिल्म द कश्मीर फाइल्स को लेकर घाटी में कश्मीरी मुस्लिम भी मुखर हो रहे हैं। वह खुलकर कश्मीरी हिंदुओं के पलायन को अपनी हार और नाकामी बता रहे हैं। साथ ही यह भी मान रहे हैं कि अगर कश्मीरी हिंदुओं को उनके मुस्लिम पड़ोसी रोकने का प्रयास करते तो आज द कश्मीर फाइल्स नहीं बनती। अगर बनती तो उसमें कश्मीरी मुस्लिम समाज का खलनायक चेहरा नजर नहीं आता। कश्मीर में चारों तरफ कश्मीरी नौजवानों की लाशों से भरे कब्रिस्तान नजर नहीं आते।
हालांकि कश्मीर में द कश्मीर फाइल्स सिनेमाहाल मेें प्रदर्शित नहीं की जा रही है। इसके बावजूद कश्मीर के कई लोगों ने इस फिल्म को जम्मू में आकर या विभिन्न स्रोतों से प्राप्त कर देखा व जाना है। इनमें वह लोग भी हैं जो उस समय निजाम-ए-मुस्तफा का नारा लगा रहे थे, तो कई वह जो उस नारे का मूक समर्थन कर रहे थे।
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ बिलाल बशीर ने कहा कि आप कश्मीरी पंडितों के पलायन को नहीं झुठला सकते। अगर यह कहेंगे कि कश्मीरी हिंदुओं 50 मरे हैं और कश्मीरी मुस्लिम 500 तो भी कश्मीरी मुस्लिम अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। कश्मीरी हिंदुओं के पलायन के लिए तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन को जिम्मेदार ठहराने वालों को आज जवाब देना है। उन्हें बताना चाहिए कि आखिर क्या वजह थी कि कश्मीरी मुस्लिमों ने पड़ोसी कश्मीरी हिंदुओं को पलायन करने से क्यों नहीं रोका। मतलब यह कि वे प्रत्यक्ष-परोक्ष तरीके से उनके पलायन के हक में थे।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के महासचिव और लेखक जावेद बेग ने कहा कि मेरे घर से कुछ ही दूरी पर संग्रामपोरा बीरवाह में 21 मार्च, 1997 को सात कश्मीरी हिंदुओं को उनके घर से बाहर निकालकर कत्ल किया गया था। वह नवरोज की रात थी। नवरोज का इस्लाम में क्या महत्व है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। क्या उस समय किसी हुर्रियत नेता ने निदा की थी, नहीं की। ऐसी एक नहीं अनेक घटनाएं हैं। हमें तो कश्मीरी हिंदुओं से सामूहिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। हमसे जो पहले की पीढ़ी है, जिसमें मेरे वालिद भी श्ाामिल हैं, अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर पाए।
उदारवादी हुर्रियत से जुड़े एक वरिष्ठ अलगाववादी ने कहा कि हमें द कश्मीर फाइल्स से परेशान होने की नहीं बल्कि अपने गिरबां में झांकने की जरूरत है। अगर कोई मुझसे पूछेगा कि कश्मीर में हमारा एजेंडा क्यों नाकाम हुआ तो मैं उसे इसे फिल्म से सबक लेने को कहूंगा। यह फिल्म हम जैसे उन कश्मीरी मुस्लिमों को कठघरे में खड़ा करती है, जो कश्मीरी हिंदुओं के बिना कश्मीर को अधूरा बताते हैं। यह फिल्म हमसे सवाल करती है कि हमने क्यों नहीं पलायन रोका।
आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के प्रवक्ता रह चुके एक पूर्व आतंकी कमांडर ने कहा कि मैंने आजादी के नाम पर नहीं, इस्लाम के नाम पर ही बंदूक उठाई थी। हम भारत से आजादी इसलिए मांगते रहे कि हम मुस्लिम हैं और कश्मीर में मुस्लिमों का ही राज चाहिए था। उस समय लगता था कि आजादी आज मिल जाएगी, बस कश्मीरी हिंदुओं को भगाओ। जब यहां लोगों को होश आया तो पता चला कि सब बंदूक के गुलाम हो चुके हैं। मैं यहां कई लोगों को जानता हूं, जिन्होंने आजादी व इस्लाम के नाम पर बंदूक उठाने वालों का इस्तेमाल किया। क्या किसी ने कश्मीरी हिंदुओं की संपत्ति की हिफाजत की है, नहीं। उसे खरीदा है या फिर उस पर कब्जा किया है।