प्रदेश के दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और बीजेपी के दिग्गज अपनी पूरी ताकत बस्तर में झोंके हुए हैं। नक्सल प्रभावित बस्तर में विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही बड़े नेताओं की चहल-कदमी शुरू हो गई थी। यहां मैदान पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तक चुनावी बिसात पर बीजेपी की गोटी सेट कर चुके हैं तो कांग्रेस की ओर राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे और महासचिव प्रियंका गांधी यहां पारी शुरू कर चुकी हैं। जाहिर है सत्तारुढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल बीजेपी की नजर यहां की 12 सीटों पर है। माना जाता है कि प्रदेश की सत्ता का द्वार बस्तर से खुलता है। दोनों ही दलों ने बस्तर जीत के लिए विशेष रणनीति बनाई है। इस चुनाव में बस्तर में मुख्य मुद्दा नक्सलवाद बनाम विकास होगा।
नक्सल प्रभाव के कारण विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने भाजपा के 24 नेताओं को एक्स श्रेणी की सुरक्षा दी है। दरअसल, पिछले दो वर्षों में 10 से अधिक भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या नक्सली कर चुके हैं। इन घटनाओं पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी बस्तर में अपनी सभाओं के दौरान भूपेश सरकार को घेर चुके हैं। शाह ने जोर दिया कि मोदी सरकार नक्सलवाद और आतंकवाद के विरुद्ध जीरो टालरेंस की नीति अपना रही है। देश में नक्सलवाद सिर्फ छत्तीसगढ़ के तीन जिलों तक सिमट कर रह गया है। केंद्र सरकार ने वहां विकास पहुंचाया, वहां बिजली पहुंचाई और नक्सलग्रस्त इलाकों में सुरक्षाबलों के कैंप खोले। एनआइए और ईडी को भी नक्सलियों के खिलाफ अभियान में जोड़ा। बस्तर बटालियन बनाई गई। वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भूपेश सरकार पर आरोप लगाया था कि अगर कांग्रेस सरकार का सहयोग मिलता तो यहां भी नक्सलवाद खत्म हो जाता।
कांग्रेस भी बस्तर में विकास के दावों को आधार बनाते हुए चुनाव मैदान में उतर आई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस सरकार में नक्सल प्रभाव के कारण बंद किए गए बस्तर में 363 स्कूलों को खुलवाने, उद्योग और कारोबार में वृद्धि, आपसी विश्वास और सुरक्षा की कार्ययोजनाओं से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बदलाव का दावा कर चुके हैं। बस्तर की सभी 12 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं, जबकि बस्तर लोकसभा सीट से कांग्रेस सांसद हैं।
बस्तर की 12 में 11 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। चुनावी इतिहास गवाह है कि जिस दल पर बस्तर ने भरोसा जताया उसकी सरकार बनी है। राज्य विभाजन के समय 12 से 11 सीटें कांग्रेस के पास थी तो अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। 2003 में स्थिति उलट गई बीजेपी के पास 9 और कांग्रेस के पास 3 सीटें थी तो सरकार बीजेपी ने बनाई। 2008 में बीजेपी को 11 और कांग्रेस को 1 सीट मिली और दोबारा बीजेपी की सरकार बन गई। 2013 में बीजेपी को 8 और कांग्रेस को 4 सीटें तो तीसरी बार बीजेपी सत्ता में लौट आई। मगर, 2018 में सीटों की तस्वीर बदली तो सत्ता भी बदल गई। इस बार कांग्रेस को 11 और बीजेपी को 1 सीट मिली थी। सरकार कांग्रेस की बनी। अब देखना है कि 2023 के चुनाव में बस्तर की हवा का रुख क्या होगा। कांग्रेस और बीजेपी के दिग्गज कैसे अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष माहौल बनाते हैं और बस्तर किस पर विश्वास करता है।