Ekhabri धर्मदर्शन, पूनम ऋतु सेन। राजनांदगांव जिला मुख्यालय से लगभग 41 किलोमीटर दूर स्थित डोंगरगढ़ दक्षिण-पूर्वी मध्य रेलवे के हावड़ा मुम्बई रेल मार्ग पर और रायपुर-नागपुर राष्ट्रीय राजमार्ग में महाराष्ट्र प्रांत से लगा सीमांत तहसील मुख्यालय है। ब्रिटिश शासन काल में यह एक जमींदारी थी। प्राचीन काल से बिमलाई देवी यहाँ की अधिष्ठात्री हैं, जो आज बम्लेश्वरी देवी के नाम से विख्यात है।
बम्लेश्वरी माँ का मंदिर
यह प्रसिद्ध मन्दिर एक पहाड़ी पर 16 सौ फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए 11 सौ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है। पहाड़ी के ऊपर एक लम्बा-चौड़ा चबूतरा है, जिसके बीचों बीच यह मन्दिर स्थापित है। इसका निर्माणकाल अज्ञात है, तथापि इतिहासकार तथा पुरातात्विक विषय के जानकारों के अनुसार यह कलचुरी कालीन है। जनसामान्य में प्रचलित धारणा के अनुसार यह 2 हजार वर्ष पुराना है। कई बार जीर्णोद्धार के कारण इसका बाहरी स्वरूप आधुनिक प्रतीत होता है, लेकिन मूल संरचना में किसी प्रकार बदलाव नहीं किया गया है। इसके चारों ओर प्रदक्षिणा पथ निर्मित है। देवी प्रतिमा, उनके वस्त्र और आभूषण आदि गोण्ड मूर्ति कला से प्रभावित है।
यहाँ की पहाड़ियों से 15वीं 16वीं शती ई. की अनेक मूर्तियाँ मिली हैं। इतिहासकारों के अनुसार यहाँ 16वीं शताब्दी तक गोण्ड राजाओं का शासन था। अनुमान लगाया जाता है, कि सम्भवतः इस मन्दिर का निर्माण भी इसी राजवंश ने करवाया होगा।
पौराणिक कथा
किंवदंती है, कि आज से लगभग 2200 वर्ष पूर्व डोंगरगढ़ एक अत्यंत समृद्ध नगरी थी। उस जमाने में डोंगरगढ़ का नाम कामावती था। यहाँ राजा कामसेन का शासन था। मान्यता है, कि उनके पिता वीरसेन ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया था। इस मन्दिर से सम्बन्धित प्रसिद्ध दन्त कथा के अनुसार काम कन्दला, राजा कामसेन के राज दरबार में नर्तकी थी। वही माधवनल नामक निपुण संगीतज्ञ हुआ करता था। एक बार माधवनल ने कामकन्दला के नृत्य से प्रभावित होकर राजा कामसेन की दी हुई मोतियों की माला कामकन्दला को भेंट कर दी। क्रोधित होकर राजा ने माधवनल को राज्य से निकाल दिया। माधवनल डोंगरगढ़ की पहाड़ियों की गुफा में जाकर छिप गया। कामकन्दला व माधवनले एक दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों सबकी नजर बचाकर एक दूसरे से मिलने लगे। राजा कामसेन का पुत्र मदनादित्य कामकन्दला के प्रति आसक्त था।
भयभीत कामकन्दला उससे प्रेम का नाटक करने लगी। मदनादित्य को जब सच्चाई की जानकारी मिली उसने कामकन्दला को राजद्रोह के आरोप मे बंदी बना लिया और माधवनल को पकड़ने सिपाहियों को भेजा। माधवनल पहाड़ी से निकल भागा और उज्जैन जा पहुँचा, जहाँ राजा विक्रमादित्य का शासन था। उन्होंने माधवनल की सहायता करने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी सेना के साथ कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में विक्रमादित्य विजयी हुए एवं मदनादित्य, माधवनल के हाथों मारा गया। युद्ध के पश्चात विक्रमादित्य द्वारा कामकन्दला एवं माधवनल की प्रेम परीक्षा लेने हेतु मिथ्या सूचना फैलाई गई, कि माधवनल वीरगति को प्राप्त हो गए। इतना सुन कामकन्दला ने ताल में कूदकर प्राणोत्सर्ग कर दिया। उधर कामकन्दला के आत्मोत्सर्ग से माधवनल ने भी अपने प्राण त्याग दिये।