रायपुर। (पूनम ऋतु सेन), नवरात्र का आंठवां पवित्र दिन मां महागौरी को समर्पित है। मां दुर्गा का आठवां स्वरूप और आठवीं शक्ति हैं महागौरी। माता महागौरी के स्वरूप का वर्णन किया जाए तो देवी मां के महागौरी स्वरूप की चार भुजाएं हैं। इनका वाहन कभी वृषभ तो कभी सिंह होता है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है।
महाष्टमी की पूजा विधि
जैसा कि कोरोना काल में हर किसी के लिए मंदिर जाकर महाष्टमी पूजन संभव नहीं है, इसके लिये आप घर पर ही पूजा कर सकते हैं। सर्वप्रथम पीले वस्त्र धारण करके पूजा आरम्भ करें, मां के समक्ष दीपक जलाएं और उनका ध्यान करें। पूजा में मां को श्वेत या पीले फूल अर्पित करें। उसके बाद इनके मन्त्रों का जाप करें। अगर पूजा मध्य रात्रि में की जाय तो इसके परिणाम ज्यादा शुभ होंगे। मां की उपासना सफेद वस्त्र धारण करके करें। मां को सफेद फूल और सफेद मिठाई अर्पित करें। साथ में मां को इत्र भी अर्पित करें।
पहले मां के मंत्र का जाप करें। इसके बाद मां को अर्पित किया हुआ इत्र अपने पास रख लें और उसका प्रयोग करते रहें।
मंत्र पूजा
• श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दघान्महादेवप्रमोददा ।
• सर्व मंगलाय मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
• महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
कन्या पूजन
अष्टमी तिथि के दिन कन्याओं को भोजन कराने की परंपरा है, इसका महत्व और अपने नियम है। नवरात्रि केवल व्रत और उपवास का पर्व नहीं है। यह नारी शक्ति के और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है। हालांकि नवरात्रि में हर दिन कन्याओं के पूजा की परंपरा है, पर अष्टमी और नवमी को अवश्य ही कन्या पूजा की जाती है। परम्परानुसार 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान किया गया है।
महागौरी की कथा
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा का विधान है। भगवान शिव की प्राप्ति के लिए इन्होंने कठोर पूजा की थी, जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था। जब भगवान शिव ने इनको दर्शन दिया, तब उनकी कृपा से इनका शरीर अत्यंत गौर हो गया और इनका नाम गौरी हो गया।
माना जाता है कि माता सीता ने श्री राम की प्राप्ति के लिए इन्हीं की पूजा की थी। नवरात्रि के 8वें दिन की देवी मां महागौरी हैं। परम कृपालु मां महागौरी कठिन तपस्या कर गौरवर्ण को प्राप्त कर भगवती महागौरी के नाम से संपूर्ण विश्व में विख्यात हुईं। भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करने वाली है अर्थात शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं। मां की शास्त्रीय पद्धति से पूजा करने वाले सभी रोगों से मुक्त हो जाते हैं और धन-वैभव संपन्न होते हैं।
महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही थीं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।