उत्तर प्रदेश के मथुरा में अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन (तृतीय) न्यायालय ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान-ईदगाह मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए विवादित स्थल का अमीन से निरीक्षण कराने के आदेश दिए हैं। इसकी रिपोर्ट 20 जनवरी को आगामी सुनवाई पर न्यायालय के समक्ष रखी जाएगी। निरीक्षण का काम दो जनवरी से शुरू किया जा सकता है। इससे पहले वाराणसी में भी अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद स्थित श्रृंगार गौरी परिसर में कोर्ट कमिश्नर से सर्वे कराया था।
अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन (तृतीय) सोनिका वर्मा इस मामले में दिल्ली निवासी हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता और उपाध्यक्ष गुरुग्राम निवासी सुरजीत सिह यादव के वाद पर सुनवाई कर रही थीं। हिंदू सेना के दोनों पदाधिकारियों ने आठ दिसंबर को न्यायालय में वाद दायर किया। इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर से शाही मस्जिद ईदगाह को हटाने की मांग की गई। न्यायालय ने इस पर पहली सुनवाई में ही निरीक्षण के आदेश जारी कर दिए हैं।
न्यायालय में हिदू सेना की ओर से कहा गया था कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ भूमि पर मंदिर था। मुगल शासक औरंगजेब ने 1669-70 में इसे तोड़कर शाही मस्जिद ईदगाह बनाई थी। वादी ने 1968 में शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के बीच हुए समझौते को भी गलत करार दिया है। अदालत से मांग की है कि इसे रद किया जाए।
न्यायालय ने अमीन से निरीक्षण कर पूरी आख्या मांगी है। इस मामले में शाही मस्जिद ईदगाह की इंतजामिया कमेटी, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया गया है। वादी के अधिवक्ता शैलेश दुबे ने बताया कि प्रतिवादीगणों को भी नोटिस जारी किए जा रहे हैं। अदालत को 22 दिसंबर को भी इस पर सुनवाई करनी थी, लेकिन यह नहीं हो सकी।
अमीन के निरीक्षण में क्या होगा
वरिष्ठ अधिवक्ता राजकुमार अग्रवाल ने बताया कि अदालत के आदेश से अमीन मौके पर जाकर पूरा निरीक्षण करता है। वह न्यायालय का ही कर्मचारी होता है। सर्वे से पहले दोनों पक्षों को सूचित किया जाता है। मौके पर जाकर निरीक्षण करने के बाद ही वह रिपोर्ट देगा कि वहां क्या बना है। इसका पूरा नक्शा तैयार किया जाएगा।
पहले रद हो चुका है ऐसा वाद
मथुरा के सिविल कोर्ट ने इस तरह की मांग वाला एक वाद निरस्त कर दिया था। अदालत का कहना था कि 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत किसी भी धार्मिक स्थल की प्रकृति में बदलाव नहीं किया जा सकता। हालांकि मामले में अलग-अलग न्यायालयों में 10 वाद और लंबित हैं।
निरीक्षण और सर्वेक्षण में अंतर
वरिष्ठ अधिवक्ता मधुवनदत्त चतुर्वेदी बताते हैं कि न्यायालय ने जो आदेश दिया है वह निरीक्षण का है। निरीक्षण् में हम किसी भी स्थान की यथास्थिति की रिपोर्ट तैयार करते हैं और संबंधित न्यायालय में प्रस्तुत करते हैं। मगर सर्वेक्षण में हम तथ्यों को जुटाते हैं। या यह कह सकते हैं कि उक्त स्थान पर किसी विशेष वस्तु की तलाश करते हैं। न्यायालय ने जो आदेश दिया है, वह निरीक्षण से संबंधित है।