रायपुर। भारत और श्रीलंका के बीच बने राम सेतु को लेकर अब कई बड़े खुलासे हो सकते हैं। इसे लेकर एक रिसर्च की जा रही है जिसके माध्यम से पता चलेगा कि राम सेतु की आयु कितनी है। इसके अलावा रिसर्च में पता लगाया जाएगा कि इसे कैसे बनाया गया था। इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि यह रिसर्च रामायण काल की आयु निर्धारित करने में मदद कर सकती है। इस रिसर्च के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने हरी झंडी दे दी है और इसे सीएसआईआर-नेशनल इस्टीट्यूट आॅफ आॅसनोग्राफी, गोवा द्वारा अंजाम दिया जाएगा। सीएसआईआर-नेशनल इस्टीट्यूट आॅफ आॅसनोग्राफी (एनआईओ), गोवा इस बात का पता लगाएगी कि भारत और श्रीलंका के बीच उथले समुद्री सतह जिसे राम सेतु कहा जाता है, का निर्माण किस कालखंड में और कैसे हुआ था। जियोलॉजिकल टाइम स्केल एवं अन्य सहायक पर्यावरणीय डेटा के जरिए इस सेतु का अध्ययन किया जाएगा। एनआईओ के निर्देशक प्रो सुनील कुमार सिंह ने टीओआई को बताया कि यह अध्ययन पुरातात्विक प्राचीन वस्तुओं, रेडियोमेट्रिक और थर्मोल्यूमिनिसेंस (टीएल) पर आधारित होगा।
रेडियोमेट्रिक तकनीक का होगा प्रयोग
उन्होने कहा रेडियोमेट्रिक तकनीक के जरिए इस स्ट्रक्चर की उम्र का पता लगाया जाएगा। इस स्ट्रक्चर में कोरल्स और प्यूलिस पत्थरों की बहुतायत है। कोरल्स में कैल्शियम काबोर्नेट होता है जिसके जरिए हमें इस पूरे सेतु की उम्र का पता चलेगा और रामायण के कालखंड का पता लगाने में मदद मिलेगी। यह परियोजना, चुनाव आधारित राज्य से परे धार्मिक और राजनीतिक महत्व रखती है। हिंदू महाकाव्य रामायण में कहा गया है कि वानर सेना ने राम को लंका तक पहुँचने के लिए इसका निर्माण किया था। भगवान राम जब लंका के राजा रावण की कैद से अपनी पत्नी सीता को बचाने निकले थे तो रास्ते में समुद्र पड़ा। उनकी वानर सेना ने ही इस पुल का निर्माण किया था। रामायण के अनुसार, वानरों ने छोटे-छोटे पत्थरों की मदद से इस पुल को तैयार किया था।