कर्ज की ईएमआइ चुकाने पर अगस्त तक मिले स्थगन यानी मोरेटोरियम के दौरान ब्याज नहीं लिए जाने की मांग कर रहे कर्जदारों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जो खाते इस वर्ष 31 अगस्त तक फंसे कर्ज यानी एनपीए में नहीं थे, उन्हें कोर्ट के अगले आदेश तक इस श्रेणी में नहीं डाला जाए। कोर्ट इस मामले पर 10 सितंबर को फिर सुनवाई करेगा।
इस आदेश से उन लोगों को राहत मिल गई है, जिनके लोन खातों को कर्ज नहीं चुकाने के कारण एनपीए घोषित कर दिए जाने की तलवार लटक रही थी। हालांकि गुरुवार को इंडियन बैंक्स एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने सुनवाई के दौरान कोर्ट में कहा था कि कम से कम दो महीने तक किसी भी खाते को एनपीए घोषित नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने साल्वे का बयान आदेश में भी दर्ज किया है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कर्ज अदायगी में मोरेटोरियम के दौरान ब्याज नहीं वसूले जाने की मांग पर लंबी बहस सुनी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार लोगों की समस्या को समझती है। हर सेक्टर की स्थिति पर विचार आवश्यक है, लेकिन बैंकिंग सेक्टर पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। बैंकिंग सिस्टम अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। मोरेटोरियम योजना का उद्देश्य था कि उपलब्ध पूंजी का व्यापारी वर्ग जरूरी उपयोग कर सके और उन पर बैंक की किस्त का भार नहीं पड़े। उस योजना का मकसद ब्याज माफ करना नहीं था। सरकार ने राहत पहुंचाने के कई उपाय किए हैं। इस पर पीठ ने पूछा कि क्या सरकार आपदा राहत कानून के तहत कुछ करेगी। कोर्ट ने पूछा कि क्या हर सेक्टर के हिसाब से विचार होगा।
मेहता ने कहा कि आरबीआइ के छह अगस्त के सर्कुलर में बैंकों को कर्ज वसूली की प्रक्रिया तय करने की छूट दी गई है। इस बारे में एक कमेटी बनाई गई है जो अपनी रिपोर्ट देगी। बैंक्स एसोसिएशन के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि हर सेक्टर के लिए भुगतान की अलग अलग योजना बनाई जाएगी। नया कर्ज भी दिया जाएगा। कर्ज लेने वाले सामान्य लोगों के बारे में भी सोचना है, जिनकी समस्या उद्योगों से भिन्न् है।