शोधकर्ता जब यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि मस्तिष्क में यादों का किस प्रकार संग्रह होता है, तब उन्होंने एक नए प्रोटीन फोल्डिंग तंत्र की पहचान की, जो दीर्घकालिक स्मरण शक्ति के लिए अत्यावश्यक है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह तंत्र अल्जाइमर डिजीज के टाऊ प्रोटीन आधारित माउस माडल में खराब अवस्था में होता है। अगर इस प्रोटीन फोल्डिंग तंत्र को बहाल कर दिया जाए, तो डिमेंशिया के कारण होने वाली स्मृतिलोप की परेशानी काफी हद तक दूर की जा सकती है। फोल्डिंग तकनीक के जरिये प्रोटीन की 3डी श्रृंखला तैयार कर उसे जैविक रूप से सक्रिय किया जाता है। अध्ययन निष्कर्ष ‘साइंस एडवांसेज” नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व न्यूरो साइंटिस्ट टेड एबल की प्रयोगशाला में सहयोगी तथा अमेरिका स्थित लोवा न्यूरोसाइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक स्नेहज्योति चटर्जी ने किया। चटर्जी के अनुसार, ‘दीर्घकालिक स्मरण शक्ति में प्रोटीन फोल्डिंग मशीनरी की भूमिका को दशकों तक नजरअंदाज किया गया है। हम जानते हैं कि दीर्घकालिक स्मृतियों को एकत्र करने के लिए जीन एक्सप्रेशन व प्रोटीन संश्लेषण आवश्यक है। प्रोटीन को कार्यात्मक रूप से सक्रिय बनाने के लिए उन्हें सही ढंग से फोल्ड करने की आवश्यकता होती है। हमारा काम इस अवधारणा को प्रदर्शित करता है कि ये चैपरोन प्रोटीन वे हैं, जो वास्तव में सिनैप्टिक फंक्शन व प्लास्टिसिटी को प्रभावित करने के लिए प्रोटीन को फोल्ड करते या मोड़ते हैं।”