शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ न सिर्फ स्वयं बल्कि दो दर्जन से ज्यादा विधायकों को लेकर ताल ठोंकते दिख रहे एकनाथ शिंदे को अब भले ही शिवसेना विधायक दल के नेता पद से हटा दिया गया है, लेकिन पिछले एक दशक से वह शिवसेना में एक मजबूत शख्सियत के रूप में जाने जाते रहे हैं। कभी रिक्शाचालक रहे शिंदे के करीबियों का कहना है कि शिवसेना में उनकी लोकप्रियता के साथ-साथ भाजपा नेताओं की निकटता की वजह से उन्हें खतरा भी माना जाता रहा है। यही वजह है कि शिवसेना के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें पार्टी के नीतिगत मामलों से अलग कर दिया था, लेकिन उनके संसाधनों का इस्तेमाल करता रहा। वह कुछ लोगों द्वारा अपने विभाग के कामकाज में हस्तक्षेप की शिकायत भी कर रहे थे। 10 जून को राज्यसभा और 20 जून को विधान परिषद के चुनावों में भी शिंदे को शिवसेना नेतृत्व ने रणनीतिक विचार-विमर्श और उसके क्रियान्वयन से अलग रखा। उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में भी प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। व्यथित शिंदे विधायकों को इकट्ठा करने से पहले करीब दो घंटे तक कार में बैठे रहे। इन विधायकों में से अधिकांश विधायक उनके साथ सूरत गए हैं।
2004 से अब तक लगातार चार बार विधायक चुने जा चुके एकनाथ शिंदे मुंबई के पड़ोसी जिले ठाणे के सबसे बड़े एवं शिवसेना के प्रतिबद्ध नेता माने जाते हैं। उन्हें कभी ठाणे के शिवसेना प्रमुख रहे आनंद दिघे का शिष्य माना जाता है। यह भी माना जाता है कि वह ठाणे में लोगों से अपने बेहतर संपर्क और जनसेवा के कारण ही जीतकर आते हैं। उनकी ताकत को देखते हुए ही शिवसेना ने 2014 में उन्हें नेता विरोधी दल बनाया था। तब शिवसेना ने भाजपा से अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। बाद में शिवसेना के भी फड़नवीस सरकार में शामिल हो जाने के बाद शिंदे को सार्वजनिक निर्माण विभाग जैसा महत्वपूर्ण पद दिया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र श्रीकांत शिंदे को शिवसेना ने कल्याण से लोकसभा का टिकट भी दिया, जो फिलहाल सांसद हैैं।
2019 में विधानसभा चुनाव के दौरान शिंदे को उम्मीद थी कि ठाकरे परिवार दिवंगत बालासाहब ठाकरे की परंपरा का निर्वाह करते हुए स्वयं मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं बनेगा। लेकिन, पहले आदित्य ठाकरे के खुद विधानसभा चुनाव लड़ जाने और फिर उद्धव ठाकरे द्वारा कांग्रेस-राकांपा जैसी धुर विरोधी विचारधारा वाली पार्टियों से हाथ मिलाकर खुद मुख्यमंत्री बन जाने से शिंदे को शिवसेना में अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा है। उनकी बगावत का एक और बड़ा कारण शिवसेना का हिंदुत्व के एजेंडे से भटकना भी माना जा रहा है। उनके राजनीतिक गुरु आनंद दिघे प्रखर हिंदूवादी नेता रहे हैं। जबकि शिवसेना की आज की सहयोगी और मार्गदर्शक पार्टी राकांपा का ठाणे में रिकार्ड हिंदू विरोधी ही रहा है। ठाणे में उसके नेता जीतेंद्र आह्वाड गुजरात में एक एनकाउंटर में मारी गई इशरत जहां के साथ खड़े दिखते रहे हैं। आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा इशरत को अपना कार्यकर्ता बता चुका है। इसलिए ठाणे में जीतेंद्र आह्वाड के कंधे से कंधा मिलाकर चलना एकनाथ शिंदे के लिए संभव नहीं हो पाना भी उनकी बगावत का एक कारण माना जा रहा है।