नए राष्ट्रपति के लिए यूं तो चुनाव बाकी है, लेकिन सत्ताधारी दल भाजपा ने ओडिशा से आने वालीं और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है। अब यह तय माना जा रहा है कि विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के लिए यह हारी हुई लड़ाई है। आदिवासी समुदाय से आने वाली मुर्मू के मैदान में उतरने के बाद विपक्षी खेमे के कई दल ही नहीं खुद कांग्रेस के लिए कुछ राज्यों में यह तय करना मुश्किल होगा कि विपक्ष के औपचारिक उम्मीदवार यशवंत को वोट दें या फिर सत्ताधारी के उम्मीदवार मुर्मू को।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में हुई भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुर्मू के नाम की घोषणा की। यूं तो वोट के अंकगणित में राजग के पास पहले ही 48 फीसद वोट थे और कुछ दलों का परोक्ष समर्थन था, लेकिन मुर्मू का नाम बड़ा फेरबदल कर सकता है। यशवंत को जहां विपक्ष ने मोदी सरकार के बड़े आलोचक के रूप में राजनीतिक चेहरा बनाया है वहीं मुर्मू सामाजिक संदेश के साथ राजनीतिक दबाव बनाने में सफल हो सकती हैं। वे महिला हैं, देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। इस लिहाज से यशवंत के ही राज्य झारखंड में अब सत्ताधारी दल झामुमो के लिए उनका विरोध करना संभव नहीं होगा। पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। इस राज्य में आदिवासियों को नजरअंदाज करना किसी भी दल के लिए संभव नहीं है। ऐसे में वहां कांग्रेस के विधायक किस तरह वोट करेंगे यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए भी सिरदर्द होगा। ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजद चाहकर भी मुर्मू का विरोध नहीं कर पाएगी, क्योंकि मुर्मू ओडिशा से हैं। गुजरात में इसी साल चुनाव है और कांग्रेस वहां आदिवासी क्षेत्रों में पैठ बनाने की कोशिश में है। लिहाजा किसी आदिवासी का विरोध करना वहां के कांग्रेस विधायकों के लिए भी आसान नहीं होगा। जबकि भाजपा के लिए राह आसान होगी।
पूरे देश में महिलाओं की जागरूकता भी बढ़ रही है और राजनीतिक प्रक्रिया में उनकी सहभागिता भी। हाल के दिनों में चार राज्यों में जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सीधे सीधे महिलाओं को दिया था। राष्ट्रपति पद के लिए मुर्मू का चुनाव कर भाजपा ने जहां महिलाओं के प्रति अपने संकल्प को और स्पष्ट किया है वहीं दूसरे विपक्षी दलों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने पिछड़ों और दलितों को कई संदेश दिए हैं। पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनाकर भाजपा इस वर्ग में भी एक ठोस संदेश देने की कोशिश में है। माना जा रहा है कि मुर्मू के जरिये भाजपा इस लड़ाई को 80:20 बनाने की कोशिश में है। बताया जाता है कि मुर्मू 25 जून को नामांकन करेंगी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी 26 जून को विदेश दौरे पर रवाना होंगे और 29 जून को नामांकन की आखिरी तारीख है।
जानिए द्रौपदी मुर्मू को
-द्रौपदी मुर्मू के पास वृहद प्रशासनिक अनुभव है। वह ओडिशा में परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य एवं पशुपालन विभाग की मंत्री रही हैैं।
-64 वर्षीय मुर्मू ने राजनीतिक करियर का आरंभ पार्षद के रूप में किया और बाद में ओडिशा के रायरंगपुर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की वाइस चेयरमैन बनीं।
-संताल आदिवासी समुदाय से आने वाली मुर्मू ने झारखंड के राज्यपाल के तौर पर भी अपनी प्रशासनिक दक्षता की छाप छोड़ी है।
-भुवनेश्वर के रमा देवी कालेज से कला स्नातक मुर्मू ने राजनीति और समाजसेवा में लगभग दो दशक का समय व्यतीत किया है।
पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के नाम पर एकजुट हुए विपक्षी दल, कांग्रेस भी साथ
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दलों ने पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को अपने संयुक्त उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारने का एलान किया है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सपा, माकपा-भाकपा और राकांपा से लेकर द्रमुक समेत विपक्षी खेमे की लगभग सभी पार्टियों ने अपनी बैठक में पूर्व भाजपा नेता सिन्हा को विपक्ष का राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने का फैसला किया। इस फैसले के जरिये विपक्षी दलों ने भविष्य की राजनीतिक डगर पर अपनी एकजुटता और साझी रणनीति से भाजपा-राजग का सियासी मुकाबला करने का पहला संदेश देने की कोशिश की है। यशवंत सिन्हा विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर 27 जून को अपना नामांकन करेंगे।
विपक्षी दलों ने यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने का एलान करने के बाद भाजपा से उनका समर्थन करने की अपील कर अपना सियासी दांव भी चला। राकांपा नेता शरद पवार की पहल पर राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने के लिए 15 विपक्षी दलों की संसदीय सौंध में बैठक हुई और यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमत होने में इन दलों ने बहुत देरी नहीं लगाई। कांग्रेस के संचार व मीडिया महासचिव जयराम रमेश ने बैठक के बाद पत्रकारों के समक्ष घोषणा कि 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्षी दलों ने सर्वसम्मति से यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है।
जानिए यशवंत सिन्हा को
-एक तेजतर्रार प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता के रूप में लंबा अनुभव रखते हैैं यशवंत सिन्हा
-राजनीतिशास्त्र में परास्नातक यशवंत सिन्हा ने समाजवादी विचारधारा के साथ राजनीति की शुरुआत की थी
-चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वह विदेश मंत्री भी रहे
-1996 में भाजपा में शामिल होने के बाद प्रमुख जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। वर्ष 2018 में भाजपा से इस्तीफा दिया