लॉकडाउन की बंदिशों के साथ शहर में शुक्रवार को देवस्नान पूर्णिमा मनाई गई। सूर्योदय की बेला में भगवान मंदिर के गर्भ गृह से बाहर आए। स्नान के बाद महाप्रसाद व छप्पन भोग का प्रसाद लगाया गया लेकिन लॉकडाउन के कारण भक्तों को दर्शन व प्रसाद नहीं मिल सका। शुक्रवार को ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान महाप्रभु जगन्नाथ स्नान के लिए मंदिर के गर्भ गृह से बाहर आए। शहर के राजामहल स्थित जगन्नाथ मंदिर व पैलेस रोड स्थित गोपीनाथ जीव मंदिर के अलावा अन्य मंदिरों में भी देव स्नान पूर्णिमा की पूरी तैयारी की गई थी। हर बार दोपहर में होने वाला स्नान कार्यक्रम इस बार सूर्योदय की बेला में था।
मंदिरों में लॉकडाउन के कारण भक्तों की भीड़ की एंट्री नहीं थी। ऐसे में मंदिर समिति के पदाधिकारियों एवं पंडितों ने ही कुछ श्रद्धालुओं के साथ स्नान पूर्णिमा मनाई। सुबह महाप्रभु जगन्नाथ भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा की प्रतिमा स्नान मंडप में लाई गई। यहां पर औषधि मिश्रित सुगंधित जल से भगवान का अभिषेक किया गया। मिट्टी के घड़ों में जल भरकर पंडितों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ महास्नान की प्रक्रिया पूरी की। इस दौरान पुुरी की पंरपरा के अनुसार पूजन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आरती व प्रसाद चढ़ाया गया। अब स्नान के बाद भगवान बीमार हो जाएंगे और परंपरा के अनुसार मंदिर के पट भक्तों के लिए बंद हो जाएंगे।
सूर्योदय पर सर्वौषधि स्नान
देव स्नान पूर्णिमा में इस बार सूर्योदय से पहले ही भगवान अपने गर्भ गृह से बाहर आ गए।गोपीनाथ जीव मंदिर के महंत पंडित ब्रजेश्वर मिश्र ने बताया कि पुरी के अनुसार ही स्नान का समय निर्धारित किया गया था। शुक्रवार को सुबह 7 बजे से पहले महास्नान,षोडशोपचार पूजन और महाआरती कर ली गई। इसके बाद भगवान को नवीन वस्त्र पहनाएं गए और दोपहर में आरती के बाद महाप्रसाद व छप्पन भोग का प्रसाद लगाया गया। लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक भंडारा व विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थगित किया गया था।
कोरोना काल में स्नान के बाद अब भगवान होम आइसोलशन में चले गए हैं। देव स्नान पूर्णिमा पर स्नान करने के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन से पखवाड़े भर तक मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं और भगवान भक्तों को दर्शन नहीं देते हैं। बीमार होने के दौरान भगवान को महाप्रसाद का भी भोग नहीं लगता है और काढ़े व विभिन्न औषधीय सामग्रियों का ही भोग अर्पण होता है। इसके बाद नेत्रोत्सव में भगवान के पट खुलने से भक्तों को दर्शन होते हैं और इसी दिन से ही भगवान की रथ यात्रा की तैयारियां शुरू होती हैं।
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