अन्न दान का लोकपर्व ‘छेरछेरा’ आज प्रदेश भर में धूमधाम से मनाया गया। छेरछेरा हर साल पौष यानी पूस महीनें की पूर्णिमा तिथि को पूरे छत्तीसगढ़ में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही बच्चें, युवक व युवतियां हाथ में थैला, टोकरी, झोली व बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा मांगने अर्थात् दान मांगने के लिए जाते हैं। घर वालें भी उत्साह के साथ धान का दान कर झोलियां भर देतें हैं। इस दिन ग्रामीण अंचलों में ‘छेरछेरा…माई कोठी के धान ल हेरहेरा…अरन-बरन कोदो दरन…जभे देबे तभे टरन’ की गुंज सुनाई देती है। वहीं छेरछेरा के सप्ताह भर पहले से ही गांवों में युवकों की टोलियां डंडा नृत्य करते भी नजर आते हैं। हालांकि अब डंडा नृत्य करने वालों की टोली बिरले ही नजर आतें हैं। इस दिन लोग नट बनकर नाचते गाते हुए दान मांगने जाते हैं। मान्यता है कि, इस दिन जो भी दान किया जाता है वह महादान होता है। अन्न दान के महापर्व छेरछेरा के दिन अन्नपूर्णा देवी एवं मां शाकंभरी देवी की भी पूजा की जाती है। छेरछेरा पर्व को शाकंभरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। छेरछेरा पर्व में अन्न दान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इस दिन झांझ, मंजीरा, मांदर और बैंड बाजे की धुन में वाद्य यंत्रों व पारंपरिक बाजे-गाजे के साथ युवाओं की टोली दान मांगने द्वार-द्वार पर दस्तक देतें हैं। घर की मुहाटी में पहुंचे टोली को किसान भी खुले हाथों से अन्न का दान करते हैं। इस दिन धान, चांवल व नकदी दान के रूप में देतें हैं। छेरछेरा के दिन छत्तीसगढ़ के अनेक क्षेत्रों में पारंपरिक छेरछेरा पुन्नी मेला का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन अमीर हो या गरीब सभी दान मांगने जाते हैं।