शोधकर्ताओं ने अस्थमा के प्रभावी उपचार की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ाया है। इससे विश्वभर के अस्थमा के 26.2 करोड़ से ज्यादा मरीजों के लिए सांस लेना आसान हो सकता है। आस्ट्रेलिया स्थित एडिथ कोवान यूनिवर्सिटी की तरफ से कराए गए हालिया अध्ययन का निष्कर्ष यूरोपियन रेस्पिरेटरी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन का नेतृत्व ईसीयू के डा. स्टैसी रेइंके व स्विडन स्थित कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के डा. क्राइग व्हीलाक ने किया है। शोधकर्ताओं की टीम ने गंभीर अस्थमा पीड़ितों में एक अलग तरह के बायोकेमिकल (मेटाबोलाइट) की मौजूदगी पाई। यूरिन (पेशाब) की जांच से इसका पता लगाया जा सकता है। उन्होंने अध्ययन के तहत 11 देश्ाों के 600 प्रतिभागियों के यूरिन की जांच की। टीम ने इस दौरान एक खास प्रकार के मेटाबोलाइट की खोज की, जिसे कार्निटाइंस के नाम से जाना जाता है।
अस्थमा के गंभीर मरीजों में इसकी मौजूदगी कम हो जाती है। कार्निटाइंस कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पन्न करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैैं। डा. रेइंके के अनुसार, ‘हमारे अध्ययन निष्कर्ष अस्थमा के इलाज की नई पद्धति के विकास में सहायक होंगे। फेफड़ों में हुए बायोकेमिकल बदलाव रक्त में प्रवेश करते हुए यूरिन के जरिये बाहर निकल जाते हैैं। यानी, यूरिन में मेटाबोलाइट की मौजूदगी की जांच करते हुए अस्थमा के गंभीर मरीजों का सटीक इलाज किया जा सकता है।”