श्रद्धा मर्डर केस में आरोपी आफताब का नार्को टेस्ट आज नहीं होगा। नार्को टेस्ट से पहले उसके पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए कोर्ट से मंजूरी मिल गई है। फोरेंसिक साइकोलॉजी डिवीजन के हेड डॉ. पुनीत पुरी ने बताया कि नार्को टेस्ट से पहले आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट किया जाएगा। इसके लिए कोर्ट की मंजूरी मिल गई है। पॉलीग्राफ टेस्ट नार्को टेस्ट से अलग होता है। इसमें आरोपी को बेहोशी का इंजेक्शन नहीं दिया जाता। बल्कि कार्डियो कफ जैसी मशीनें लगाई जाती हैं। इनके जरिए ब्लड प्रेशर, नब्ज, सांस, पसीना, ब्लड फ्लो को मापा जाता है। इसके बाद आरोपी से सवाल पूछे जाते हैं। झूठ बोलने पर वो घबरा जाता है, जिसे मशीन पकड़ लेती है। इस तरह का टेस्ट पहली बार 19वीं सदी में इटली के अपराध विज्ञानी सेसारे लोम्ब्रोसो ने किया था। बाद में 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मैरस्ट्रॉन और 1921 में कैलिफोर्निया के पुलिस अधिकारी जॉन लार्सन ने भी ऐसे उपकरण बनाए। शातिर क्रिमिनल बचने के लिए अकसर झूठी कहानियां बनाते हैं। पुलिस को गुमराह करते हैं। इनसे सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता है। नार्को टेस्ट में साइकोएस्टिव दवा दी जाती है, जिसे ट्रुथ ड्रग भी कहते हैं। जैसे- सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल। सोडियम पेंटोथल कम समय में तेजी से काम करने वाला एनेस्थेटिक ड्रग है। इसका इस्तेमाल सर्जरी के दौरान बेहोश करने में सबसे ज्यादा होता है। ये केमिकल जैसे ही नसों में उतरता है, शख्स बेहोशी में चला जाता है। बेहोशी से जागने के बाद भी आरोपी आधी बेहोशी में रहता है। इस हालत में वो जानबूझकर कहानी नहीं गढ़ सकता, इसलिए सच बोलता है।मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आफताब से 50 से ज्यादा सवालों का पैटर्न तैयार कर लिया गया है। इसमें पूरी घटना के सिलसिले को जोड़ने की कोशिश होगी। आफताब के जवाब के आधार पर पुलिस सबूत जुटा सकती है।