आॅक्सफैम ने असमानता कम करने की प्रतिबद्धता पर जारी किया वैश्विक सूचकांक-सीआरआईआई-2020
रायपुर। हर साल की तरह इस वर्ष भी आॅक्सफैम ने विश्व में विद्यमान असमानता को लेकर रिपोर्ट जारी किया है। इस नए सर्वे को लेकर आॅक्सफैम इंडिया ने रायपुर में असमानता कम करने की प्रतिबद्धता पर वैश्विक सूचकांक-सीआरआईआई 2020 जारी किया।
इस अवसर पर सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि, मीडिया के प्रतिनिधि और सामाजिक चिन्तक,बुद्धिजीवी उपस्थित रहे। एक प्रस्तुति के द्वारा इंडेक्स के निष्कर्षों को बताया गया। इस वैश्विक सूचकांक से पता चलता है कि असमानता कम करने में दुनिया के अधिकांश देशो की भयावह विफलता ने उन्हें कोविड-19 से निपटने में बुरी तरह से पीछे कर दिया है। इंडेक्स से पता चलता है कि कोरोना महामारी से पहले 158 देशों में से केवल 26 देश अपने बजट का अनुशंसित 15% रकम स्वास्थ्य पर खर्च कर रहे थे, जबकि 103 देशों में जब महामारी आई तो हर तीसरे में से एक मजदूर बुनियादी श्रम अधिकारों और सुरक्षा से वंचित था। सूचकांक के निष्कर्ष आॅक्सफैम की व्यापक चिंता को बढ़ाती है कि महामारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर भारी पड़ रही है, जिससे गरीबी में रहने वाले लोग इस व्यवस्था से बाहर हो जायेंगे।
धन की असमानता, दुनिया के वजूद के लिए घातक
राजधानी स्थित प्रदेश के प. रविशंकर विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. जीवनलाल भारद्वाज ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि यह सूचकांक प्रेरित करता है कि दुनिया भर के लोग अपनी सरकारों से पूछे कि दुनिया में भेदभाव और असमानता को कैसे कम किया जा सकता है? आय और धन की असमानता, पूरी दुनिया के वजूद के लिए घातक है. सूचकांक में भारत का 8 दक्षिण एशियाई देशो में सातवे स्थान पर रहना बहुत ही अफसोस जनक है। इंडेक्स की प्रक्रिया को अवगत कराते हुए प्रकाश गर्डिया, आॅक्सफैम इंडिया ने कहा कि, आॅक्सफैम ये सूचकांक पिछले तीन वर्ष से हर वर्ष निकाल रहें हैं, उद्देश्य ये है कि सार्वजनिक सेवाएं (शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा), सकारात्मक कराधान और अनुकूल श्रमिक नीतियाँ प्राथमिकताएं बनें जो व्याप्त असमानता को कम करने मे सहयोगी होंगे। पर्याप्त बजट प्रावधान किए जाएं, अन्यथा सार्वजनिक सेवाआें में गुणात्मत्क परिवर्तन लाना मुश्किल है। इस इंडेक्स के साथ ही जारी किये गए इंडिया फैक्टशीट में भारत के 17 राज्यों के बीच स्थिति को भी देखने का प्रयास किया गया है। इसके अनुसार, शिक्षा मे प्रति व्यक्ति खर्च में छत्तीसगढ़ चौथे नंबर पर है, जबकि आंध्र प्रदेश पहले स्थान पर है, वहीं स्वास्थ्य में केरल पहले स्थान पर है और छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर है।
भारत समग्र रैंकिंग में 129वें स्थान पर
इस सूचकांक में भारत के लिए केवल यही अच्छी खबर है कि वर्ष 2018 की समग्र रैंकिंग में 147वे स्थान से सुधार हुआ है और भारत इस वर्ष 129वें स्थान पर है। कराधान में 50वें स्थान से उठ कर 19वें स्थान पर आ गया है। दूसरी ओर, सार्वजनिक सेवाओं में भारत 151 से 141 वें स्थान पर रहा है, पर मजदूर अधिकारों के मामले में 141वे रैंक से पिछड़ कर 151 वें स्थान पर आ गया । अपने विचार प्रकट करते हुए विजेंद्र, आॅक्सफैम इंडिया ने कहा कि, 158 देशों की सरकार की असमानता करने की प्रतिबद्धता को नापने का यह प्रयास, दुनिया भर में चर्चा का विषय बनता है। अमीरों पर अधिक कर, और गरीबों को सामाजिक सुरक्षा देकर, श्रमिकों को बेहतर मजदूरी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक व्यय करना, असमानता घटाने की प्रतिबद्धता के व्यापक पैमाने माने जा सकते है। छत्तीसगढ़ सहित कम सकल घरेलू उत्पाद वाले राज्यों का स्वास्थ्य सेवा पर अधिक खर्च करना, एक सकारात्मक खबर है। छत्तीसगढ़ का शिक्षा पर प्रति व्यक्ति व्यय रु 5710 और स्वास्थ्य पर रु 1606 व्यय करना, उत्साहजनक खबर है, जबकि केंद्र से अनुदान व ट्रांसफर, कुल खर्च का आधा ही होता है।
पहले नंबर में केरल
राज्यों की भी स्थिति का सर्वे किया गया है, जिसमें 17 राज्यों के अध्ययन किया गया है उन 17 राज्यों में छत्तीसगढ़ की स्थिति यदि शिक्षा में प्रति व्यक्ति खर्च के आधार पर देखें तो छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर है और इसी तरह स्वास्थ्य में भी प्रति व्यक्ति खर्च के आधार पर देखा जाए तो छत्तीसगढ़ का स्थान चौथे नंबर पर है। जिसमें सबसे पहले नंबर पर स्वास्थ्य पर केरल है जो प्रति व्यक्ति के ऊपर 19 सो रुपए खर्च करता है और शिक्षा में पहले नंबर पर आंध्र प्रदेश है जो प्रति व्यक्ति 6000 से अधिक रुपए सर्च करता है।