छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राज्य की सभी सहकारी समितियां सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर कर दिया है। सरकार के कदम के बाद सरकारी कामकाज में पारदर्शिता की वकालत करने वालों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। उनका आरोप है कि ऐसा करके भूपेश सरकार सहकारी समितियों के घोटाले को छुपाने की तैयारी कर दी है, जबकि सहकारी समितियों के कामकाज में घोटाले की अधिक आशंका रहती है।
प्रदेश में हाल के दिनों में सहकारी समितियों के माध्यम से कामकाज को काफी प्रोत्साहित किया जा रहा है। कांग्रेस सरकार गोबर खरीदी से लेकर गोठान संचालन के लिए सहकारी समितियों का निर्माण किया है। इन समितियों को सरकार की तरफ से भारी भरकम अनुदान भी दिया जाता है। यहीं से भ्रष्टाचार और गड़बड़ घोटालों की आशंका भी बढ़ रही है। सोसायटियों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखा जाना सवाल खड़े कर रहा है। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सूचना आयोग से इन समितियों को आरटीआई के दायरे में लाने की मांग की है।
उधर, भूपेश सरकार के इस कदम के खिलाफ भाजपा ने भी मोर्चेबंदी शुरू कर दी है। भाजपा का आरोप है कि सरकार ने यह कदम घोटाले को उजागर नहीं होने देने की नीयत से यह कदम उठाया है। आरटीआइ के दायरे में होने पर सहकारी समितियों के कामकाज पर नजर रखी जा सकती है।