नंदी को भगवान शिव का प्रमुख भक्त माना जाता है। इनकी स्थापना प्रत्येक शिव मंदिर में भगवान शिव के सामने की जाती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के वाहन नंदी हैं और वो भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय हैं। जहां तक नंदी के कान में मनोकामनाएं बोलने की बात की जाए तो ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव अधिकतर तपस्या में रहते हैं और वो संपूर्ण जगत के संचालन में आंखें मूंदे बैठे रहते हैं। वहीं नंदी को चेतना का प्रतीक माने जाते हैं, जो खुली आंखों और खुले कानों से छिपी हुई बातों को शिव जी के सामने व्यक्त करते हैं।
भगवान शिव की तपस्या में कभी भी विघ्न नहीं डालना चाहिए इसलिए नंदी के माध्यम से हम अपना कोई भी संदेश भगवान शिव तक पहुंचाते हैं। चूंकि नंदी तपस्थल के बाहर चैतन्य अवस्था में स्थित रहते हैं, इसलिए जो भी भक्त भगवान शिव के पास अपनी समस्या लेकर आते हैं, नंदी उनकी वहीं कामनाएं सुन लेते हैं और शिव जी तक पहुंचा देते हैं।
नंदी को माना जाता है सबसे बड़ा संदेशवाहक
शिव भक्तों की मानें तो नंदी ही एक ऐसा माध्यम हैं जो कभी किसी के साथ भेद भाव नहीं करते हैं और साफ़ शब्दों में संदेश शिव जी तक पहुंचाते हैं। यही वजह है कि उन्हें भगवान का संदेश वाहक भी कहा जाता है। नंदी शिवजी के प्रमुख गण हैं, इसलिए भगवान शिव भी उनकी बात मान लेते हैं।
क्या है पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव माता पार्वती के साथ ध्यान कर रहे थे और नंदी जी ने फैसला किया कि वह भी उनके साथ ध्यान में लीन होंगे। उस समय वह तपस्या में भगवान शिव के सामने बैठ गए और इसी वजह से नंदी की मूर्ति हमेशा भगवान शिव के सामने रहती है। एक समय जालंधर राक्षस से बचने के लिए सभी भक्त जन शिव जी के पास गए। वो तपस्या में लीन थे और गणपति भी संदेश भगवान शिव तक पहुंचाने में असमर्थ थे।
उस समय गणपति ने भी संदेश नंदी के माध्यम से ही शिव जी तक पहुंचाया। तभी से ये मान्यता है कि यदि हम अपनी कोई भी मनोकामना नंदी के माध्यम से भगवान शिव तक पहुंचाते हैं तो वह अवश्य पूरी होती है। वहीं यदि भगवान शिव के साथ नंदी बैल की पूजा नहीं की जाती है तो भगवान शिव की पूजा अधूरी रहती है।
मूषक भी है गणपति का संदेशवाहक
भगवान गणेश अपनी बुद्धि और ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। उन्हें सभी देवताओं से ऊपर पूजा जाता है और वह हमारे जीवन में सभी भाग्य और आशीर्वाद लाते हैं। इसी वजह से हिंदू धर्म में भगवान गणेश का विशेष स्थान है।
परंपरागत रूप से, हर शुभ अवसर की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा के साथ ही होती है। गणेश शब्द ब्रह्मा का रूप है और इसलिए ओंकार का प्रतीक माना है। इस प्रकार, किसी अन्य देवता का इतना महत्व नहीं है जितना गणेश जी का है। वहीं यदि हम गणपति के मूषक की बात करें तो मूषक राज को उनकी सवारी माना जाता है। गणपति को मूषक के बिना अधूरा माना जाता है।
मूषक के कान में क्यों कही जाती हैं मनोकामनाएं
भगवान गणेश हमेशा मूषक की सवारी करते हैं। लेकिन भगवान गणेश ने अपने वाहन के लिए छोटे जानवर को ही क्यों चुना ये एक बड़ा सवाल है। दरअसल इसके पीछे की भी एक कहानी है जिसकी वजह से मूषक उनका वाहन बना।
मूषक को भी अत्यंत चैतन्य जानवर माना जाता है और वह किसी भी घटना से पहले ही सतर्क रहता है। इसी वजह से यदि हमें कोई भी मनोकामना भगवान गणेश तक पहुंचानी होती है तो मूषक से कान में कही जाती है। इसी वजह से कई बड़े मंदिरों में मूषक की बड़ी मूर्ति गणपति की मूर्ति के बाहर ही लगाई जाती है।
इन्हीं कारणों की वजह से ऐसा माना जाता है कि मूषक और नंदी के कान में यदि हम कोई भी मनोकामना बोलते हैं तो वो अवश्य ही पूर्ण हो जाती है।