Ekhabri धर्मदर्शन, (पूनम ऋतु सेन)।आज भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती है। सरल सादगी भरा जीवन और त्वरित निर्णय लेने वाले शास्त्री जी एक अच्छे प्रशासक, लोकनेता और प्रखर व्यक्तित्व वाले भारतीय नागरिक थे। आज पूरा देश उनकी जयंती मना रहा है। राजनीति से परे हटकर शास्त्री जी की ईमानदारी भी अनुकरणीय है, जिसके कई किस्से प्रेरक प्रसंग बनकर मशहूर हुए हैं।
आइये आज शास्त्री जी की जयंती पर उनके रोचक प्रसंगों के बारे में जानते हैं-
• शास्त्री जी कैसे बने प्रधानमंत्री?
सन 1962 में इंडो-चीन युद्ध के सदमे से तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू जी की मृत्यु जनवरी 1964 में हो गयी, तब लगभग 10 दिनों के लिए गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक पीएम बनाया गया परंतु उस समय कांग्रेस पार्टी के समक्ष सबसे कद्दावर नेताओं में से एक मोरारजी देसाई थे जो पीएम पद के अग्रणी दावेदार थे लेकिन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज ने शास्त्री जी का नाम सामने किया, क्योंकि एक युद्ध झेल चुके देश की जनता को एक जन नेता की जरूरत थी जो पार्टी में और विश्व पटल पर संयम दिखाते हुए कार्य कर सके। ऐसे में शास्त्री जी संयोगवश सर्वसम्मति से भारत के दूसरे प्रधानमंत्री चुन लिए गए।
• भारत को “जय जवान जय किसान” का नारा कैसे मिला?
लाल बहादुर शास्त्री जी का कार्यकाल एक पीएम के तौर पर औसत लेकिन भरोसेमंद रहा। भारत चीन युध्द के तुरंत बाद पीएम बने शास्त्री जी को अपने कार्यकाल में 1965 में फिर से युद्ध का सामना करना पड़ा, इस बार भारत पाकिस्तान युद्ध चल रहा था, जैसा कि युद्धकालीन देश अनाज को लेकर समस्याओं से घिर जाता है वैसा ही हालत भारत की भी बन चुकी थी, तब शास्त्री जी ने हफ्ते में एक दिन उपवास रखने का निर्णय दिया और किसानों व जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया और उस वक्त धीरे से यह नारा पूरे हिंदुस्तान के आवाम की आवाज बन गया।
• ऊँचे पद पर रहते हुए भी मानवता का भाव
लाल बहादुर शास्त्री जी तब केंद्रीय गृहमंत्री थे। उनके निवास स्थान का एक दरवाजा जनपथ की ओर था और दूसरा अकबर मार्ग की ओर था। एक बार दो श्रमिक स्त्रियाँ सिर पर घास का गट्ठर रखकर उस मार्ग से निकलीं तो चौकीदार ने उन्हें धमकाना शुरू किया। उस समय शास्त्री जी अपने बरामदे में बैठे कुछ शासकीय कार्य कर रहे थे। उन्होंने सुना तो बाहर आ गए और पूछने लगे, क्या बात है? चौकीदार ने सारी बातें बता दीं। शास्त्री जी ने कहा, क्या तुम देख नहीं रहे हो कि उनके सिर पर कितना बोझ है। यदि यह निकट के मार्ग से जाना चाहती हैं तो तुम्हें क्या आपत्ति है? जाने क्यों नहीं देते? जहाँ सहृदयता हो, दूसरों के प्रति सम्मान भाव हो, वहाँ सहज मानवता का भाव झलक आता है, जो शास्त्री जी के व्यक्तित्व का सबसे खास पहलू था।
• 40 रुपये में चल जाता था घर खर्चा
सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी के तहत उनको 50 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती थी। एक बार उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा कि पैसे समय पर मिल जाते हैं न और घर का खर्च तो आराम से चल जाता है। इस पर उनकी पत्नी ललिता ने बताया कि घर तो 40 रुपये में ही चल जाता है इसके बाद शास्त्री जी ने स्वयं आर्थिक सहायता कम करने का अनुरोध कर दिया।
• आज़ादी पाने की लालसा लिए स्वतंत्रता संग्राम में ‘मरो नहीं मारो’ का नारा दिया
“मरो नहीं मारो” का नारा “करो या मरो” का ही एक रूप था। गाँधीवादी सोच के चलते महात्मा गाँधी ने नारा दिया था- ‘करो या मरो’। लेकिन हममें से बहुत कम लोगों को यह पता है कि उस समय क्रांति की ज्वाला बुझ न जाये इस सोच से शास्त्री जी ने भारत छोड़ो आंदोलन की आगाज़ वाले रात में ही ‘मरो नहीं मारो’ का नारा दिया इसी नारे का असर था कि सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की प्रचंड आग फ़ैल गई।अंग्रेज़ों की दमनकारी नीतियों तथा हिंसा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना अत्यंत आवश्यक था। तत्पश्चात् स्थिति को भांपते हुए शास्त्री जी ने चतुराईपूर्वक यह नारा दिया, जो एक क्रान्ति के जैसा साबित हुआ।
– पूनम ऋतु सेन