विश्व की दूसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति और एशिया का मैन्यूफैक्चरिंग पावरहाउस चीन लंबे समय से दुनिया की सबसे बड़ी वैश्विक महाशक्ति बनने का सपना देख रहा है। 3 सालों पहले तक कहा जा रहा था कि चीन दुनिया के सभी देशों को पीछे छोड़कर ग्लोबल आर्थिक सिरमौर बनने जा रहा है। हालांकि अब ऐसी रिपोर्ट आई है कि चीन के सपनों और दावों में दम नहीं रहा है। कम्यूनिस्ट विचारधारा वाला यह देश अब वित्तीय मोर्चे पर कठिनाइयों से जूझ रहा है।
चाइना बैलेंस ऑफ इंटरनेशनल पेमेंट्स के डेटा बताते हैं कि चीन में तिमाही आधार पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट यानी एफडीआई में लगातार गिरावट जारी है। साल 2023 की तीसरी तिमाही में चीन में एफडीआई -11.8 बिलियन डॉलर पर आ गया। साल 1998 के बाद यह पहली बार है, जब चीन में एफडीआई प्रवाह गिरकर निगेटिव जोन में चला गया है। 25 सालों के पब्लिशिंग के एफडीआई इतिहास में ये गिरावट इस बात का संकेत है कि चीन में जितनी तेजी से विदेशी निवेशक पैसा लगा नहीं रहे हैं, उससे ज्यादा तेजी से फॉरेन इंवेस्टर्स वहां से पैसा निकाल रहे हैं।
चीन में एफडीआई के गिरते फ्लो के पीछे जियो-पॉलिटिकल टेंशन के अलावा अमेरिका के साथ खराब होते रिश्ते बड़ी वजह माने जा रहे हैं। चीन में लंबे समय से जारी आर्थिक मंदी के माहौल के चलते ग्लोबल कंपनियां यहां निवेश से पीछे हट रही हैं। साथ ही निचली ब्याज दरों के असर से भी इंवेस्टर्स के मन में यहां पैसा लगाने को लेकर कोई उत्साह नहीं है। एक तरफ जहां बढ़ती जियो-पॉलिटिकल टेंशन आंशिक रूप से चीन में एफडीआई के पलायन के लिए जिम्मेदार है, वहीं विदेशी कंपनियां और निवेशक भी चीन में बढ़ते जोखिमों से सावधान हो गए हैं, जिसमें सरकारी छापों और हिरासत की आशंकाएं भी शामिल हैं।