पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि नाथूराम गोडसे महात्मा गांधी को मारने के बाद अत्याधिक व्यथित थे, वे जानते थे कि इसके बाद वे नहीं बचेंगे और उन्हें फांसी हो जाएगी, इसके बाद भी उन्होंने उसे मारा। उन्होंने यह बातें रायपुर के विधानसभा रोड स्थित स्वर्णभूमि में कही। उन्होंने कहा कि गोडसे की प्रतिबंधित किताब उनके पास वृंदावन और पुरी में है।
शंकराचार्य ने कहा कि कोई भी बोलता है तो कुछ सहमत होते हैं कुछ असहतम होते हैं। गोडसे के वक्तव्य की 70 पृष्ठों में लगभग पुस्तक है। उसे पढ़िए। ‘गोडसे जी’ ने जो वक्तव्य दिया बहुत मार्मिक है। उन्होंने लिखा था अपनी मौत को स्वीकार करके ही गांधी जी को मारने जा रहा हूं या मैंने मारा, फांसी की सजा से पहले। क्या वेदना थी..उसे समझिए। हालांकि गोडसे ने कभी अपने उठाए कदम को सही नहीं कहा। गोडसे के विचार से मुझे सहमत या असहमत मत मानिए।
गोडसे जी की वेदना क्या थी उनकी पुस्तक को पढ़िए जो प्रतिबंधित है। किसी पुस्तकालय में हो तो पढ़िए। किताब में गोडसे ने लिखा है कि अगर महात्मा गांधी को नहीं मारते तो उस व्यक्ति की कूटनीति चल जाती। देश के लिए उनका ज्यादा समय तक जीवित रहना सही नहीं होता। अपनी किताब में गोडसे ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि देश की व्यवस्था अत्यंत ही खराब हो रही थी, इसके चलते ही उन्होंने गांधी को मारा।