पूरी दुनिया में रंगों के उपयोग होता है। कई सभ्यताओं की पहचान तो उनके द्वारा उपयोग में लाए गए रंगों के कारण हो सकी। रंग हमारे जीवन पर गहरा असर डालते हैं। मानव सभ्यता में रंगों का काफ़ी महत्व रहा है। हर रंग के अपने सकारात्मक और नकारात्मक असर होते हैं, इसलिए यह नहीं कर सकते कि काला रंग बुरा ही होता है। इसके बावजूद कई सभ्यताओं में इसे शोक का रंग माना जाता है। विक्टोरियन काल में काला या स्लेटी रंग उपयोग होता था। फ़िरऔन काले कपड़े पहनता था। इसी तरह शिया मोहर्रम में काले कपड़े ही पहनते हैं। विरोध जताने के लिए भी काले रंग का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे काले झंडे दिखाना, सिर पर काला कपड़ा या काली पट्टी बांध लेना।
मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है। ये सात रंग हैं लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैंगनी। लाल रंग को रक्त रंग भी कहते हैं, क्योंकि ख़ून का रंग लाल होता है। यह शक्ति का प्रतीक है, जो जीने की इच्छाशक्ति और अभिलाषा को बढ़ाता है। यह प्रकाश का संयोजी प्राथमिक रंग है, जो क्यान रंग का संपूरक है। यह रंग क्रोध और हिंसा को भी दर्शाता है। हरा रंग प्रकृति से जुड़ा है। यह ख़ुशहाली का प्रतीक है। हमारे जीवन में इसका बहुत महत्व है। यह प्राथमिक रंग है। हरे रंग में ऑक्सीजन, एल्यूमीनियम, क्रोमियम, सोडियम, कैल्शियम, निकिल आदि होते हैं। इस्लाम में इसे पवित्र रंग माना जाता है। नीला रंग आसमान का रंग है। यह विशालता का प्रतीक है। भारत का क्रीड़ा रंग भी नीला ही है। यह धर्मनिरपेक्षता का भी प्रतीक है। यह एक संयोजी प्राथमिक रंग है। इसका संपूरक रंग पीला है। गहरा नीला रंग अवसाद और निराशा को भी प्रकट करता है। पीला रंग ख़ुशी और रंगीन मिज़ाजी को दर्शाता है। यह आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह वैराग्य से भी संबंधित है। हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। विष्णु और कृष्ण को यह रंग प्रिय है। बसंत पंचमी तो इसी रंग से जुड़ा पर्व है। डल पीला रंग ईर्ष्या को दर्शाता है। स़फेद रंग पवित्रता और निर्मलता का प्रतीक माना जाता है। यह शांति और सुरक्षा का भाव पैदा करता है। यह अकेलेपन को भी प्रकट करता है। काला रंग रहस्य का प्रतीक है। यह बदलाव से रोकता है। यह नकारात्मकता को भी दर्शाता है।
चार ईसा पूर्व में महान दार्शनिक अरस्तु ने नीले और पीले रंगों की गिनती शुरुआती रंगों में की। उन्होंने इसकी तुलना प्राकृतिक वस्तुओं से की, जैसे सूरज-चांद और दिन-रात आदि। उस समय ज़्यादातर कलाकारों ने उनके सिद्धांत को माना। इसी बीच मेडिकल प्रेक्टि्स के पितामाह कहे जाने वाले 11वीं शताब्दी के ईरान के चिकित्सा विशेषज्ञ हिप्पोकेट्स ने नया सिद्धांत पेश किया। उन्होंने रंगों का इस्तेमाल दवा के तौर पर किया। उनका मानना था कि सफ़ेद फूल और वॉयलेट फूल के अलग-अलग असर होते हैं। उन्होंने एक और सिद्धांत दिया कि हर व्यक्ति की त्वचा के रंग से उसकी बीमारी का पता लगाया जा सकता है। रंगों के ज़रिये इसका इलाज भी मुमकिन है।
स्विट्जरलैंड के चिकित्सक वॉन होहेनहैम ने 15वीं शताब्दी में ह्यूमन स्टडी पर शोध किया। उन्होंने ज़ख्म भरने के लिए रंगों का इस्तेमाल किया 1672 में न्यूटन ने रंगों पर पहला शोध पेश किया। रंगों के विज्ञान पर काम करने वाले लोगों में जॉन्स वॉल्फगैंग वॉन गौथे भी शामिल थे। उन्होंने न्यूटन के सिद्धांत को नकारते हुए थ्योरी ऑफ कलर पेश की। उन्होंने कहा कि अंधेरे में से सबसे पहले नीला रंग निकलता है, वहीं सुबह के उगते हुए सूरज की किरणों से पीला रंग सामने आता है। नीला रंग गहरे रंगों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि पीला रंग हल्के रंगों का।
आज कई चिकित्सक कलरथैरेपी को इलाज का अच्छा ज़रिया मानते हैं और इससे अनेक बीमारियों का उपचार भी करते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा में भी रंगों का विशेष महत्व है। रंग चिकित्सा के मुताबिक़ शरीर में रंगों के असंतुलन के कारण बीमारियां पैदा होती हैं। रंगों का समायोजन ठीक करके बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है।
ऑस्टवाल्ड ने आठ आदर्श रंगों को विशेष क्रम में संयोजित किया। इसमें पीला, नारंगी, लाल, बैंगनी, नीला, आसमानी, समुद्री हरा और हरा रंग शामिल है। 60 के दशक में एंथ्रोपॉलिजिस्ट्स केन ने रंगों पर अध्ययन किया। उनके मुताबिक़ सभी सभ्यताओं ने रंगों को दो वर्गों में बांटा-पहला हल्के रंग और दूसरा गहरे रंग।