Ekhabri धर्मदर्शन, पूनम ऋतु सेन। प्राचीन शक्ति स्थलों में पाली विकासखंड के चैतुरगढ़ स्थित मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर, कोरबा जिले को एतिहासिक व सामरिक दृष्टि से समृद्ध करने वाला स्थल है। जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चैतुरगढ़ किले का निर्माण कल्चुरी संवत 821 अर्थात 1069 ईस्वी में हुआ। इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि पाली कभी राजा जाजल्व देव और विक्रमादित्य की नगरी थी ।
“चैतुरगढ़- छत्तीसगढ़ का कश्मीर”
छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक छत्तीसगढ़ का यह प्रसिद्ध स्थान मैकाल पर्वत श्रेणी में स्थित है। समुद्र के तल से इसकी ऊँचाई लगभग 3060 फीट है इसलिए गर्मी के मौसम मे भी यहाँ का तापमान 30 डिग्री से ऊपर नहीं जाता और इसलिए ही चैतुरगढ़ को “छत्तीसगढ़ का कश्मीर” भी कहा जाता है।
चैतुगढ़ किले के सिंहद्वार के पास 5 वर्ग मीटर का समतल क्षेत्र है। यहाँ विभिन शासकों द्वारा बनवाए गए 5 तालाब हैं, इनमें से 3 तालाबों में साल भर पानी भरा रहता है। यहीं किले के सिंहद्वार के पश्चिम में अत्यंत सुन्दर देवी मन्दिर है। नागर शैली में बने इस मन्दिर के आयताकार गर्भगृह में महिषासुरमर्दिनी की बारहभुजी प्रतिमा स्थापित है। सभामण्डप का खुला मंच है। मण्डप की छत बिल्कुल सादा है, तथा पाँच पंक्तियों वाले स्तम्भों पर टिकी है। शिखर शंख के आकार का है। इसके परिसर में चारों ओर किले के अवशेष बिखरे पड़े हैं।
किंवदंती है, कि कलचुरी शासक राजा पृथ्वी देव कहीं जा रहे थे और रास्ता भूल गए। उस दौरान उन्होंने यहीं एक पेड़ की छांव में आश्रय लिया था। देवी ने स्वप्न में आकर कहा, कि वे इस क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित करें। आज्ञा मान राजा ने यहाँ किले तथा मन्दिर बनवाए। सातवीं शताब्दी में वाण वंशीय राजा मल्लदेव ने महिषासुरमर्दिनी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके बाद जाज्वल्यदेव ने भी 1100 ई. काल में इस मंदिर और किले का जीर्णोद्धार करवाया ।
इसके अतिरिक्त मंदिर से तीन किलोमीटर दूर ‘शंकर खोल गुफ़ा’ का प्रवेश द्वार बेहद छोटा है और एक समय में एक ही व्यक्ति लेटकर जा सकता है। गुफ़ा के अंदर शिवलिंग स्थापित है।
यह स्थल कोरबा जिला मुख्यालय से कटघोरा के रास्ते पाली के रास्ते होते हुए करीब लगभग ९० किलोमीटर की दूरी पर मैकाल पर्वत श्रेणी की ऊंचाई पर स्थित है, और जो की मैकल के उच्चतम चोटियों में से एक है।चैतुरगढ़ का यह क्षेत्र शंकर भगवान जी का मंदिर और एक गुप्त गुफा, झरना,नदी, जलाशय और भारी मात्रा में जंगली जीव जंतुओं से भरा पड़ा हुआ है। अनुपम छटाओं से युक्त यह माता का दार्शनिक स्थल अति दुर्गम जगह पर स्थित है। इस जगह पर नवरात्र में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है और यहां भक्तो की कतार लगी रहती है।
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