2007-08 की वैश्विक मंदी के दौर से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उबारने में अहम भूमिका निभाने वाले अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पूर्व चेयरमैन बेन बर्नांक को इस साल अर्थशास्त्र के नोबेल के लिए चुना गया है। बर्नांक अमेरिका के ही अर्थशास्त्रियों डगलस डब्ल्यू डायमंड और फिलिप एच डिबविग के साथ यह प्रतिष्ठित पुरस्कार साझा करेंगे। रायल स्वीडिश एकेडमी आफ साइंसेज ने अर्थशास्त्र के नोबेल विजेताओं के नामों की घोषणा की। इसी के साथ इस साल सभी क्षेत्रों में नोबेल विजेताओं के नामों की घोषणा का क्रम पूरा हो गया है। 10 दिसंबर को विजेताओं को पुरस्कृत किया जाएगा।
अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल विजेताओं के नाम घोषित करते हुए एकेडमी ने कहा कि इन तीनों के शोध ने बताया कि क्यों बैंकों का ढहना नजरअंदाज कर देना अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है। पिछली सदी के नौवें दशक में अपनी से खोज इन अर्थशास्त्रियों ने वित्तीय बाजार को रेगुलेट करने की नींव रखी थी। विजेताओं का चयन करने वाली कमेटी के जान हसलर ने कहा, “वित्तीय संकट और मंदी किसी अर्थव्यवस्था के समक्ष आने वाली सबसे बुरी परिस्थितियां हैं। भविष्य में फिर ऐसा हो सकता है। यह जरूरी है कि हम इसके पीछे के कारणों और बचने के उपायों को समझें। इन अर्थशास्त्रियों ने इसी की राह दिखाई है।”
68 वर्षीय बर्नांक ने 2006 से 2014 तक फेडरल रिजर्व की कमान संभाली थी। अभी वह वाशिंगटन में ब्रूकिग्स इंस्टीट्यूशन से जुड़े हैं। उन्होंने पिछली सदी के चौथे दशक में आई मंदी का अध्ययन कर यह बताया था कि किस तरह से घबराहट में लोगों द्वारा अपनी जमा पूंजी निकालने से बैंक प्रभावित होते हैं और फिर बैंकों के ढहने से अर्थव्यवस्था संकट में आ जाती है। उन्होंने बताया कि बैंकों का ढहना आर्थिक मंदी का कारण नहीं, बल्कि प्रक्रिया का हिस्सा है। इसी तरह यूनिवर्सिटी आफ शिकागो के डगलस डायमंड (68) और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के फिलिप डिबविग (67) ने बताया था कि कैसे बैंकों में जमा राशि पर सरकारी गारंटी वित्तीय संकट को बढ़ने से रोक सकती है। 1983 में दोनों ने मिलकर “बैंक रंस, डिपोजिट इंश्योरेंस एंड लिक्विडिटी” पुस्तक लिखी थी। इसमें बैंकों से निकासी की भगदड़ मचने के दुष्प्रभावों का उल्लेख किया गया था।
मंदी के दौर में दिखी थी सिद्धांतों की प्रामाणिकता
2008 में वैश्विक मंदी के समय तीनों अर्थशास्त्रियों के सिद्धांतों की प्रामाणिकता सामने आई थी। बर्नांक उस समय फेडरल रिजर्व के चेयरमैन थे और उनके फैसलों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर आने में मदद की थी। उन्होंने वित्त विभाग के साथ मिलकर बैंकों के लिए पैकेज की व्यवस्था कराई और क्रेडिट की कमी होने से रोका। अल्पावधि की ब्याज दरों को शून्य करने का कदम भी प्रभावी रहा। 1930 के आसपास शुरू हुई मंदी से उबरने में 10 साल का समय लग गया था, जबकि इस बार अर्थव्यवस्था डेढ़ साल में ही मंदी से उबरने लगी थी।