आप सभी ने किसी सफल व्यक्ति के बारे में अन्य व्यक्ति को कहते सुना होगा ‘उसकी ज़िद थी कि उसे इस मुकाम को हासिल करना है’, दूसरी ओर किसी असफल व्यक्ति के बारे में यह भी सुना होगा कि ‘उसकी ज़िद थी जो उसे ले डूबी’।
ये दोनों ही प्रसंग का ताल्लुक़ ज़िद से है लेकिन इसके मायने अलग-अलग है। ज़िद जरूरत भी है और जरूरत से ज्यादा होने पर हानिकारक भी।अगर आप भी किसी ज़िद के जद्दोजहद में है तो यह सुनिश्चित कर लें कि उस ज़िद का कब तक ‘जुनून’ रखना है और कब उसे ‘जाने’ देना है जिससे आप अर्श तक पहुँचे न कि फर्श तक।