Ekhabri धर्मदर्शन, (पुनम ऋतु सेन)। शारदीय नवरात्र का पर्व इस वर्ष 7 अक्टूबर से प्रारंभ हो चुका है, माँ दुर्गा के स्वरूपों का पूजन और आराधना करना भक्तों के लिए विशेष फलदायी होता है। 9 रुपों को धारण करने वाली माँ दुर्गा के प्रत्येक स्वरूप का अलग अर्थ है व उन्हें प्रसन्न करने की विधियां भी अलग अलग हैं।
आज इस पोस्ट में हम नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रम्हचारिणी के पूजन विधि, मंत्र और स्वरूप के बारे में जानेंगे।
दूसरा दिन- 8 अक्टूबर “माँ ब्रम्हचारिणी”
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारण का अर्थ है आचरण करने वाली। इस प्रकार इन दो शब्दों से मिलकर बने शब्द ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली। माता पार्वती ने भगवान शंकर को अपने पति के रूप में पाने के लिए घन घोर तपस्या की थी उनके इसी तपस्या वाले रूप को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।
कहते हैं मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सर्व सिद्धियों की प्राप्ति होती है और नवरात्र के दूसरे दिन मां के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है। माता का यह स्वरूप हमें संदेश देता है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन को विचलित नहीं करना चाहिए, मन को एकाग्रचित्त रखने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि एकाग्र मन से जिस कार्य को किया जाए वह सफल अवश्य होता है।
माँ ब्रम्हचारिणी का स्वरूप
मां ब्रह्मचारिणी के हाथों में अक्षमाला और कमंडल सुसज्जित है यदि मां के इस स्वरूप का पूजन सच्चे मन से किया जाए तो ज्ञान,सदाचार,लगन,एकाग्रता और संयम रखने की शक्ति प्राप्त होती है।
पूजन विधि
भक्तगण नवरात्र के दूसरे दिन मन व मस्तिष्क को ब्रह्मचारिणी मां के श्री चरणों में अर्पित कर एकाग्र चित्त होकर मन को स्वाधिस्ठान चक्र में स्थापित करते हैं और अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने की आशा में माता ब्रम्हचारिणी की पूजा करते हैं।
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए सुबह उठकर अपने नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्रों का धारण करना है इस दिन हरा रंग का वस्त्र धारण करना शुभ माना गया है। इसके पश्चात माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप याद कर माता के समक्ष अक्षत रोली चंदन धूप दीप के साथ मंत्र उच्चारण करते हुए माता की पूजा करें। लाल गुड़हल का फूल माता के सभी स्वरूपों को प्रिय है अतः आप गुड़हल का फूल माता के चरणों में अर्पित कर सकते हैं इसके अतिरिक्त माता को पान लौंग सुपारी भी अर्पित कर सकते हैं।
माता के इस स्वरूप का पूजन करने से कुंडली में जिस भी ग्रह का दोष उत्पन्न हो रहा हो उसे शांत कराया जा सकता है ब्रह्मचारिणी मां के पूजन से माता तो खुश होती ही है साथ ही भगवान शंकर भी खुश होकर भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं। इस दिन पंचामृत और मिश्री का भोग लगाना अच्छा माना गया है।
मंत्रोपचार
‘ॐ देवी ब्रम्हचारण्ये नमः’
‘या देवी सर्वभूतेषु ब्रम्हचारिणी रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”
पौराणिक कथा
शिव पुराण एवं रामचरितमानस में कहा गया है की माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए 1000 सालों तक फलों का सेवन किया और तपस्या की। इसके बाद कुछ दिनों तक उपवास भी किया, जमीन में रहते हुए खुले आकाश में धूप वर्षा को सहते हुए 3000 सालों तक पेड़ों की पत्ती को खाकर उन्होंने पुनः तपस्या की, इसके कुछ वर्षों बाद उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया व निर्जल निराहार भी रहीं और लगातार शंकर जी की आराधना में लगी रहीं। इस कठिन तप के बाद मां को ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुई। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा पड़ा।