झारखंड के धनबाद के बासमुड़ी गांव में 20 साल की संगीता कुमारी बकरियां चराते दिख जाएंगी। उसने जिंदगी में कुछ अलग करने की तमन्ना थी। मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपना मन फुटबाल के खेल में लगन लगाया तो उसकी मेहनत रंग लाई। 2018 में उन्होंने अंडर-18 व अंडर 19 वर्ग में भारतीय महिला फुटबाल टीम का स्ट्राइकर प्रतिनिधित्व किया। 2017 से वह झारखंड की सीनियर महिला टीम का भी हिस्सा है।
संगीता के मुताबिक गरीबी साथ ही नहीं छोड़ रही। परिवार में नेत्रहीन पिता दुबे सोरेन, मां सुंदरी देवी, भाई बाबूचांद का परिवार है। जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है। उसमें इतना ही धान होता है, जो परिवार के तीन माह काम आता है। इसलिए भाई मजदूरी करता है। घर में आधा दर्जन बकरियां हैं। उनको चराने के अलावा जरूरत पर हम ईंट भट्ठा में काम कर परिवार का सहयोग करते हैं। कभी पत्तल भी बनाते हैं। माड़ भात खाकर गुजारा होता है। मगर देश की सीनियर टीम में खेलने का जो सपना देखा, उसे पूरा करना ही जिंदगी का मकसद है। घर से आठ किमी दूर मेमको मोड़ मैदान में वह अकेले चार घंटे अभ्यास करती हें।
संगीता ने कहा कि 2016 की बात है, वह दसवीं में पढ़ती थीं। गांव के मैदान में लड़के फुटबाल खेलते थे। वह कुछ अलग हटकर करना चाहती थीं। तब फुटबाल में ही भविष्य तलाशा। मगर उन लड़कों ने अपने साथ नहीं खेलने दिया। वह अकेले इसका अभ्यास करने लगी। बाद में वह धनबाद के बिरसा मुंडा क्लब से जुड़ गई। टीम मैनेजर संजय हेंब्रम व रेलवे के फुटबाल खिलाड़ी स्व. अभिजीत गांगुली ने उत्साह बढ़ाया। यही से उसकी राह मिल गई। जिले के बाद 2017 में झारखंड की सीनियर टीम में स्थान बनाया। 2018 में भूटान में हुई साउथ एशियन फुटबाल फेडरेशन चैंपियनशिप के अंडर-18 वर्ग में देश के लिए खेलने का मौका मिला। इसमें नेपाल पहले व भारत तीसरे स्थान पर रहा। उसी वर्ष थाईलैंड में हुई अंतराष्ट्रीय स्तर की फुटबाल प्रतियोगिता के अंडर-19 वर्ग में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।
संगीता कहती हैं कि खिलाड़ियों को सरकार प्रोत्साहन के तौर पर वजीफा दे, खेल के लिए संसाधन उपलब्ध कराए, नौकरियां दे तो हमारा देश सभी खेलों में शानदार प्रदर्शन करेगा। उन्होंने बताया कि आर्थिक तंगी के कारण उसने इंटर के बाद स्नातक में प्रवेश नहीं लिया। घर की हालत बेहद खराब है। बांसमुड़ी गांव के अधिकांश लोग दैनिक मजदूरी करते हैं।