डॉग लवर्स पारुल पाल रहीं कई स्ट्रीट और ब्रीड डॉग्स
बेजुबान में भी होती है संवेदनाएं होती हैं। इनसे भी कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते हैं जिनका अनुमान लगाना मुश्किल होता है। पेशे से इंटीरियर डिजाइनर पारुल सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उनसे दूर हुए दो डॉग उनकी सोच, महात्वकांक्षाओं को इतना बढ़ा दिए की वो पैसे कमाने और आगे बढ़ने के लिए जी जान एक कर दीं। किसी तरह अपने पैट्स को वापस लाने की कोशिश करने लगीं। पारुल ने जॉब छोड़ इंटीरियर डिजाइनिंग का काम चालू किया और उन बेजुबानों की सेवा में लग गईं जिनका कोई नहीं है। पारुल एनिमल लवर हैं। वे लावासिर और छोड़े हुए डॉग को पालती हैं। उनकी सेवा करती हैं और लोगों को उन्हें गोद लेने की प्रेरणा देती हैं। फिलहाल पारुल के पास 12 डॉग्स हैं जिनकी देख रेख वो खुद कर रही हैं।
पारुल ने शौकियातौर पर दो डॉग्स घर लाया था लेकिन कुछ समय रखने के बाद घर वालों के दवाब के कारण उन्हें उडिसा एक परिचित के यहां छोड़ना पड़ा। घर से डॉग्स के जाते ही पारुल को ऐसा लगा जैसे उनका कोई अपना बिछड़ गया हो। तभी से पारुल ने उन्हें वापस लाने और घर से दूर उनका पोषण करने का ठानी। इन सबके लिए उन्हें कड़ी मेहनत कर के खुद पहले स्टैंड होना पड़ा संक्षम होना पड़ा और बिना किसी के आर्थिक सहायता के 25 हजार गाड़ी का किराया कर उडिसा से अपने पैट्स वापस ले आईं। अपने अंकल मुन्ना साहू की मदद से उनके फार्म हाउस में उन्हें रखी और वहीं से सेवा का सिलसिला चालू हुआ जो अब बड़ा रूप ले चुका है। पारुल अपनी टीम के साथ लावारिस कुत्तों को पालती हैं। इतना ही नहीं स्ट्रीट डॉग्स के साथ उनके पास अब ऐसे लोग भी आने लगे हैं जो किसी कारण से अच्छे ब्रीड के डॉग घर लाते हैं लेकिन उसे लंबे समय तक नहीं पाल पाते।
कई लोगों ने किया है एडॉप्ट
पारुल के पास डॉग्स की संख्या बढ़ती और घटती रहती है। उनके पास जैसे लोग कुत्ते छोड़ने आते हैं वैसे ही कुछ लोग एडॉप्ट करने भी आते हैं। ऐसी स्थिति में लोगों का नाम, पता, फोटो फोन नंबर समेत सभी जानकारी लेकर डॉग्स का एडॉप्ट कराया जाता है। पारुल ने बताया कि पाले हुए डॉग्स को ऐसे लोगों को एडॉप्ट के लिए दिया जाता है जो उन्हें घर पर ही रखना चाहते हैं, जबकी स्ट्रीट डॉग्स के साथ ये कंडीशन नहीं होती है, उन्हें होटलों और फॉर्म हाउस जैसी जगहों के लिए भी लोग लेकर जाते हैं।
जुड़ते गए लोग अपने आप
पारुल के इस सेवा कार्य में बिना बोले अपने आप लोग जुड़ते गए हैं। उनकी टीम में वर्षा,अजय, प्रकाश, रवि, डोमर हैं जो समय-समय पर उनकी हेल्प करते हैं। जब पारुल किसी कारण से नहीं आ पाती तो उनकी इस टीम में से कोई भी खाना बनाने फार्म हाउस पहुंच जाता है। इन्हीं की टीम की वर्षा वर्मा ने भी कैनल में कुछ पैट्स लाए हैं और उनकी देखभाल की है। पिछले कुछ दिन पहले ही कैनल में एक ऐसे कुत्ते के बच्चे को वे लाईं जिसके शरीर में कई घाव हो गए थे। उसका इलाज करा कर उसे ठिक करीं अब वो कैनल के बाकी डॉग्स के साथ आराम से रह रहा है।
डाइट पर देती है खास ध्यान
फार्म हाउस में रहने वाले सभी डॉग्स की डाइट पर खासा ध्यान दिया जाता है। रोज उनके लिए वहीं खाना पकता है और उन्हें दिया जाता है। दिन के सामान्य खाने के बाद रात का खाना उन्हें चिकन राइस दिया जाता है। इतना ही नहीं समय समय पर उन्हें दही चावल, दूध चालव चीज जैसी चीजें भी खिलाई जाती है। जिससे उनकी सेहत सही रहे और विकास अच्छा हो सके। इसके लिए औसतन उनका 300 से 400 रुपए रोज लगता है। लोगों से इसके लिए हेल्प भी मिलती है। कुछ लोग सोसाइटी का चालव और दूसरी खाने की चीजें पैट्स के लिए छोड़ भी जाते हैं जिससे काफी मदद मिल जाती है।
डॉक्टरी इलाज में हजारों खर्च
इन पैट्स को पालने में पारुल का काफी खर्च भी होता है। न सिर्फ इनके खाने पीने में बल्कि उनके डॉक्टरी इलाज में भी खासी रकम लगती है। एक बार एक स्ट्रीट डॉग के आॅपरेशन में उन्होंने 25 हजार रुपए तक खर्च किए हैं। इस दौरान डॉक्टर कदम जैन ने उनकी काफी हेल्प की। पारुल के इस अनोखी पहल में डॉक्टर जैन के साथ-साथ उनके कई क्लाइंट्स भी जुड़ गए हैं जो लोगों की हेल्प करते हैं।
लॉकडाउन में चलाए फूड बैंक
कैनल में रहने वाले डॉग्स के अलावा पारुल गाय और स्ट्रीट डॉग्स के लिए भी सेवा कार्य करती हैं। वे बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान स्ट्रीट डॉग्स को खाने की काफी दिक्कत होती थी। गायों को चारा नहीं मिलता था इसके लिए सोसाइटी के बच्चों के साथ मिलकर वे सोसाइटी के लोगों से रोज किचन का वेस्ट मटेरियल और बचा हुअ खाना इकठ्ठा करती थी और घूमने वाले मवेशियों को खिलाती थीं। पारुल उनसे मिलने वाले लोगों से कहती हैं कि वे भी अपने आसपास के मवेशियों बचा हुआ को खाना खिलाएं।