खरोरा । चमत्कार और रहस्य से भरे देश दुनिया में अनेक मंदिर हैं। सब की अपनी अलग गाथा और प्राचीन ऐतिहासिक मान्यता भी है। लेकिन खरोरा से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेल्दारसिवनी नामक गांव का अनूठा स्वयंभू शिवलिंग आज भी दुनिया के लिए एक रहस्य बना हुआ है। यहां की कीर्ति न केवल अंचल भर में अपितु पूरे राज्य तक फैली है। जहां पूरे बारहों महीनें श्रद्वालुओं का तांता लगा रहता है। महाशिवरात्रि और सावन महीनें में तो यहां मानों आस्था का जनसैलाब ही उमड़ पड़ता है। गांव में बस्ती के बीचों-बीच स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर के गर्भगृह में अद्भुत स्वयंभू अर्धनारीश्वर शिवलिंग विराजमान है। हर साल इस शिवलिंग का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक व रूद्राभिषेक करने दूर-दूर से शिवभक्त पहुंचते हैं और पूजा अर्चना कर मनोवांछित फल की कामना करते है। चूंकि सावन का महीना भोलेनाथ की आराधना का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इसी कारण बोलबम और हर-हर महादेव का जयघोष करते कांवडिय़ों का जत्था यहां हजारों किलोमीटर दूर से पैदल यात्रा कर आते हैं और दिव्य शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। मंदिर के समीप ही यहां एक अनूठा कुंड भी बना है। जहां पुण्य स्नान कर शिवभक्त भोलेनाथ का अभिषेक कर मत्था टेकते हैं। पुजारी की मानें तो शिवलिंग में चढऩे वाला जल सीधे कुंड में जाकर मिलता है। सावन महीने और महाशिवरात्रि में यहां शिवलिंग का विशेष श्रृंगार व पूजा अर्चना भी की जाती है।
साल में तीन बार रूप बदलता है शिवलिंग
मंदिर के पुजारी संतोष शर्मा व नीलम शर्मा ने बताया कि शिवलिंग ऋतुओं के अनुसार साल में तीन बार अपना रूप बदलता है। वर्षा ऋतु में शिवलिंग काला और चिकना हो जाता है। वहीं शीत ऋतु में यह काला व खुरदुरा हो जाता है। तो ग्रीष्म ऋतु में भूरा हो जाता है और शिवलिंग के बीच में ऊपर से नीचे तक दरार आ जाती है। इसमें अगुंली,माचिस की तीली, सिक्का डालने पर घुस जाता है। ऐसा किवदंती है कि यह मंदिर लगभग 200 वर्ष से भी अधिक पुराना है। इसी कारण यह समूचे अंचल में लोगों की आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है।
अग्रवाल परिवार को सपने में आए थे भोलेनाथ
मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि गांव के ही अग्रवाल परिवार को भगवान भोलेनाथ सपने में दर्शन देकर कहा था कि मैं मकान के एक भाग में हूं मुझे बाहर निकालो। इसके बाद अग्रवाल परिवार ने गांव के लोगों से चर्चा कर उस जगह की खुदाई करवाई थी। जहां से शिवलिंग मिला था। गांव के लोग शिवलिंग को गांव के तालाब के पास ले जाकर स्थापित करना चाह रहे थे। लेकिन उस स्थान से शिवलिंग को टस से मस नहीं कर सके। इसलिए उन्हें वहीं पर मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया गया था।
यहां की ख्याति पूरे छत्तीसगढ़ में है विख्यात
तीन पीढिय़ों से मंदिर में सेवा दे रहे मंदिर के पुजारी ने बताया कि द्वादश ज्योतिर्लिगों की भांति इसे भी विशेष रूप से पूजा जाता है। आज भी यह शिवलिंग रहस्य और चमत्कार से भरा हुआ है। लोगों की मानें तो इस शिवलिंग के बारे में शोध भी हुआ। लेकिन इसका रहस्य किसी को समझ नहीं आ सका।