दिल्ली दंगों के षड्यंत्र मामले में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार की आलोचना के लिए भी लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए। कोर्ट ने पूछा कि क्या देश के प्रधानमंत्री के संबंध में ‘जुमला” शब्द का इस्तेमाल करना उचित है।
हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के अमरावती में उमर खालिद के दिए भाषण को सुनने के बाद उक्त टिप्पणी की। खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने तर्क दिया कि सरकार की आलोचना अपराध नहीं बन सकती। सरकार के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति के लिए यूएपीए के आरोपों के साथ 583 दिनों की जेल की परिकल्पना नहीं की गई थी। खालिद के खिलाफ प्राथमिकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ असहिष्णुता का परिणाम है।
गौर हो कि 9 महीने से जेल में बंद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद ने 24 मार्च को जमानत देने से इन्कार करने के कड़कड़डूमा कोर्ट के निर्णय को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। फरवरी, 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगा मामले में खालिद को 13 सितंबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया था।