अम्बिकापुर, 20 नवम्बर 2025। जनजातीय गौरव दिवस 2025 के मुख्य कार्यक्रम का आयोजन सरगुजा जिले के पीजी कॉलेज ग्राउंड में हुआ, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं। इस अवसर पर राज्यपाल रमेन डेका, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सहित केंद्र व राज्य सरकार के कई मंत्री, जनप्रतिनिधि और विभिन्न विभागों के अधिकारी उपस्थित थे।
कार्यक्रम स्थल पर जनजातीय संस्कृति, लोक कला, शिल्प, वाद्ययंत्र, आभूषण, व्यंजन, कंदमूल, पूजा-पद्धति तथा पारंपरिक आवास से जुड़ी थीमेटिक प्रदर्शनियाँ लगाई गईं, जिनका राष्ट्रपति ने गहन अवलोकन किया।
अखरा और देवगुड़ी मॉडल में की आराधना
राष्ट्रपति ने जनजातीय परंपराओं का प्रतिनिधित्व करते अखरा और देवगुड़ी के मॉडल देखे और वहां देवताओं की पारंपरिक विधि से आराधना की। अखरा को सरगुजा क्षेत्र का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है, जहाँ करमा, सोहराई, फगवा, तीजा आठे सहित कई पर्वों पर सामूहिक नृत्य-गीत की परंपरा होती है।
देवगुड़ी, जिसे कई क्षेत्रों में देवाला, मंदर, सरना या शीतला कहा जाता है, जनजातीय समाज का धार्मिक आस्था स्थल है, जहाँ समुदाय एकजुट होकर ग्राम की सुख-समृद्धि की कामना करता है।
पारंपरिक आवास मॉडल का निरीक्षण
कार्यक्रम में मिट्टी और लकड़ी से निर्मित जनजातीय आवास का मॉडल भी प्रदर्शित किया गया। राष्ट्रपति ने पारंपरिक घरों की संरचना, खपरैल वाले छप्पर, परछी (बरामदा), रसोई और घरेलू उपकरणों के उपयोग संबंधी जानकारी ली।
आभूषण प्रदर्शनी में कलिंदर राम ने भेंट किया पैरी और गमछा
राज्य के पारंपरिक आभूषणों की प्रदर्शनी में हसुली, बहुटा, ऐंठी, कमरबंध, बिछिया, ठोठा और छुछिया जैसे आभूषण प्रदर्शित किए गए। इस दौरान कलिंदर राम ने राष्ट्रपति को पैरी और गमछा भेंट किया, जिसे राष्ट्रपति ने स्नेहपूर्वक स्वीकार किया।
वाद्ययंत्रों की मधुर धुनों ने दिखाई सांस्कृतिक विरासत
प्रदर्शनी में मांदर, ढोल, मजीरा, खंजरी, बांसुरी, चौरासी और पैजन जैसे वाद्ययंत्रों को प्रदर्शित किया गया। बताया गया कि जनजातीय क्षेत्रों में पर्व-त्योहारों के दौरान इन वाद्ययंत्रों की धुनें महीनों तक गूंजती रहती हैं और सामूहिक नृत्य का वातावरण बनाती हैं।
जनजातीय ज्ञान पर आधारित चिकित्सा जड़ी-बूटियों की प्रदर्शनी
जनजातीय वैद्य एवं बैगा द्वारा उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों की भी विस्तृत प्रदर्शनी लगाई गई। इसमें अश्वगंधा, कुलंजन, गिलोय, मुलेठी, सफेद मूसली, बालमखिरा, भुईचम्पा, अर्जुन छाल, गुडमान की पत्ती, कुटज छाल, शिलाजीत आदि शामिल थीं। वनांचल क्षेत्रों में निवासरत जनजातीय समुदाय इन प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से पीढ़ियों से उपचार करते आए हैं।
पारंपरिक व्यंजन और कंदमूल ने आकर्षित किया ध्यान
व्यंजनों की प्रदर्शनी में विविध प्रकार की रोटियाँ, चटनियाँ, लड्डू, बरी (कोहरी) सहित वन-उत्पाद आधारित कंदमूल जैसे कांदा, पीठारू कांदा, डांग कांदा, नकवा कांदा और सखईन कांदा प्रदर्शित किए गए। जनजातीय महिलाएँ प्राकृतिक संसाधनों से इन व्यंजनों को तैयार करती हैं।









