कोरबा । कोरबा जिले में वन विभाग के मैदानी अधिकारियों और कर्मचारियों के द्वारा सरकार की योजनाओं और भारी-भरकम राशि पर बट्टा लगाया जा रहा है। कोरबा और कटघोरा वन मंडल के कामकाज इस मामले में काफी सुर्खियों में रहे हैं लेकिन अधिकारियों की सांठ-गांठ एवं संरक्षण प्राप्त होने के कारण निचले स्तर के कर्मचारी पूरे मनोबल से नियम विरुद्ध कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। सरकार और जिला प्रशासन एक ओर पलायन को रोकने के लिए गांव में ही रोजगार विकसित कर रही है किन्तु भ्रष्टाचार में लिप्त चंद अधिकारी और उनके अधीनस्थ कर्मचारी स्थानीय लोगों को काम न देकर अपने भ्रष्ट मंसूबे को अंजाम देने के लिए बाहर से मजदूर बुलाकर काम कराने से नहीं चूकते। ऐसा एक मामला कोरबा वन मंडल के बालको अंतर्गत दूधीटांगर में सामने आया जहां मध्यप्रदेश से मजदूर बुलाकर रेंजर लक्ष्मण सिंह ने काम कराया। यहां मध्यप्रदेश के कटनी और शहडोल से 58 मजदूर काम करने पहुंचे और 29 जनवरी से काम शुरू किया। दूधीटांगर वन परिक्षेत्र में वन विभाग द्वारा वृक्षों के लिए जनस्रोत बनाए रखने के लिए कंटूर निर्माण कराया गया जिसमें इन मजदूरों ने 6-7 दिन काम किया। इन मजदूरों को बकायदा कैम्प बनाकर वन क्षेत्र में ठहराया गया। इधर मध्यप्रदेश से मजदूर बुलाकर जंगल में काम कराने का मामला सामने आया तो इसकी पड़ताल शुरू हुई। रेंजर लक्ष्मण सिंह पात्रे ने इन मजदूरों को उनके हाल पर छोड़कर बिना मजदूरी दिए ही खदेड़ दिया। इसकी जानकारी बंद कमरे में बैठे कोरबा डीएफओ प्रियंका पांडे को नहीं है?
विवश मजदूरों ने अपने बीवी-बच्चों के साथ कलेक्टोरेट में डेरा डाल दिया और रात भर कड़कड़ाती ठंड में बाहर सड़क किनारे पड़े रहे। इस मामले में कलेक्टर रानू साहू ने तत्काल संज्ञान लेकर जांच-पड़ताल शुरू की तो हड़कंप मच गई। सहायक श्रमायुक्त राजेश कुमार आदिले के द्वारा जांच में पाया गया कि 58 श्रमिक 28 जनवरी से मध्यप्रदेश से यहां बुलाए गए थे। इन्हें लाने वाले लेबर एजेंट संजय लोनी एवं रेंजर लक्ष्मण पात्रे के विरुद्ध अंतरराज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम के तहत प्रकरण पंजीबद्ध करना सहायक श्रमायुक्त ने बताया है। दूसरी ओर वन विभाग के एसडीओ आशीष खेलवार ने काफी मुश्किलों से बताया कि विभाग के द्वारा इन मजदूरों को लगभग 4 लाख रुपए का नगद भुगतान किया जा रहा है। कोरबा हो या कटघोरा वनमंडल, दोनों वन मंडल में कैम्पा व अन्य मद से होने वाले कार्यों में मजदूर और मजदूरी के नाम पर घोटाले किए जा रहे हैं। आलम यह है कि कार्यस्थल के आसपास से इन्हें मजदूर नहीं मिलते और 30-40 किलोमीटर दूर रहने वाले लोगों के नाम देकर फर्जी मजदूर बना दिए जाते हंै और इनके नाम से मजदूरी की रकम निकालकर बंदरबांट की जा रही है। मजदूरी भुगतान के लिए मस्टर रोल भी फर्जी तैयार किया जाता है तो वहीं पैसा वास्तविक मजदूर के खाते में न डालकर फर्जी मजदूरों या रेंजर सहित वन कर्मियों के रिश्तेदारों के निजी खाते में राशि डालकर आहरण करा लिया जाता है। यह खेल वर्षों से चला आ रहा है और वन विभाग के अधिकारियों की जानकारी में कई रेंजर, डिप्टी रेंजर, फॉरेस्ट गार्ड, जंगल में भ्रष्टाचार का मोर नचा रहे हैं। दूधीटांगर वाले मामले में भी यह सामने आया है जब मजदूरों को राशि उनके खाता में ट्रांसफर न कर नगद भुगतान किया जा रहा है।