आप कितनी भी आदर्श बातें करलें मगर दुनिया उसी का सम्मान करती है जो समर्थ हो, मजबूत हो। कमजोर को मिलती है तो सिर्फ सहानभूति। बहुत कम लोग होते है जो वाकई में लोगों की मदद दिल से करते है बाकी तो अपने राजनैतिक या सामाजिक लाभ के लिए। वो आप इस दौर में देख ही रहे होंगे, जब प्रवासी मजदूर पैदल चल कर अपने घर जा रहे है तब समाज का छोटा हिस्सा है जो सड़कों पर उनकी मदद के लिए आगे आए है। बाकी टीआरपी के लिए रुआंसू सा बैकग्राउंड म्यूजिक लगा कर सरकार और सिस्टम को कोस रहे है टीवी पर,बाकी उसके सामने पैर फेला के चाय बिस्कुट के साथ “कुछ नहीं हो सकता इस देश का” कह कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर देते है। रही सही कसर सोशल मीडिया पर भावुक सी फोटो के साथ तात्कालिक या पूर्व सरकार पर ठीकरा फोड़ कर।
अब आने वाला समय रोने और कोसने का नहीं अपितु कुछ करके दिखाने का है। नहीं तो फिर वही ढर्रा चालू हो जाएगा। समस्या रोने से नहीं समाधान ढूंढने से, मेहनत करने से हल होती है।समस्या को अवसर में बदलना ही हमारी पहचान होनी चाइए। आज दुनिया भारत को नए औद्योगिक क्षेत्र के रूप में देख रहा है तो इस अवसर को हमें दोनों हाथों से लपकने की जरूरत है सरकारें अपना काम करती रहेंगी। लेकिन जिम्मेदारी हमारी भी है अपने लिए, अपने समाज,परिवार और इस देश के प्रति। खैरात से ज्यादा दिन गुजारा नहीं होता।