गोद में आए छोटे से बच्चे को बड़ा करना। उसे अच्छी परवरिश देना और लायकवार बनाना यह इच्छा हर पैरेंट्स की होती है। लेकिन वर्किंग पैरेंट्स के साथ ये डगर कुछ ज्यादा किसी चैलेंजिंग हो जाती है। खास कर तब जब बच्चों की मम्मी भी किसी जॉब में हों। आज नेशनल पैरेंट्स डे में हम कुछ ऐसे ही पैरेंट्स की कहानी आप तक पहुंचा रहे हैं, जिन्होंने हर दिन एक नए चैलेंज को अपनाते हुए अपने जॉब के प्रति वफादारी की और बच्चों को भी वो प्यारा वक्त दिया जिसके वह हकदार हैं।
डॉक्टर शिल्पा चौरसिया गायनिकोलाजिस्ट हैं। इस प्रोफेशन के साथ बच्चों को समय देना अपने आप में चैलेंजिंग होता है। डॉ शिल्पा की एक 10 साल की बेटी है और 6 साल का बेटा है। पति-पत्नी दोनों ही डॉक्टर हैं। इस प्रोफेशन में हर दिन एक इमरजेंसी होती है। उस वक्त घर और हॉस्पिटल को समय देना बेहद कठिन हो जाता है।
डॉ शिल्पा कहती हैं कि डॉक्टर के बच्चे भी बड़े होने के साथ इस बात को अपना लेते हैं कि उनके पैरेंट्स को दूसरों को बचाने के लिए कभी भी इमरजेंसी में जाना पड़ सकता है। कई बार पति पत्नी दोनों को हॉस्पिटल जाना पड़ा ऐसी हालत में बच्चो को घर मे कई बार वो लॉक कर के भी गई हैं। उन्होंने बच्चो को बेहतर परवरिश के साथ-साथ खुद के लिए कुछ जरूरी काम करना भी सिखाया है, जिससे वह कभी परेशान न हों। शिल्पा कहती हैं कि मां बनने दुनियां की सुखद अनुभूति है और जब मैं दूसरों को वह खुशी देती हूं तो मुझे बेहद सुकून मिलता है इस चीज को मेरे बच्चे और पति भी समझते हैं।
9 महीने के बच्चे को छोड़ के जती थी स्कूल
नौ महीने के बेटे को छोड़ कर स्कूल जाना बेहद कठिन पल था मेरे लिए, ये कहना है कसीन अली का। कसीन पिछले 18 साल से टीचिंग जॉब कर रही हैं। शादी के पहले से वह इंग्लिश मीडियम स्कूल की टीचर रही हैं। बच्चे होने के दौरान जॉब में ब्रेक किया लेकिन जब उनका बड़ा बेटा ढाई साल का था और छोटा बेटा मात्र 9 महीने का था तब उन्होंने दोबारा अपने जॉब की शुरुआत की।
छोटा बेटा काफी छोटा था उस वक्त बच्चे को छोड़ कर जाना बेहद मुश्किल होता है था। उन दिनों कसीन के पति इंडियन आर्मी में थे। जब कसीन स्कूल में होती थी तो बच्चों का ख्याल वह रखते थे। आज उनका बड़ा बेटा इंजीनियरिंग कर रहा है और छोटा बेटा इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग कर रहा है। वह कहती हैं कि गोद में खेलने वाले बच्चे आज सही दिशा चुन लिए हैं और अपने करियर को नई उड़ान दे रहे हैं तो खुद की परवरिश सफल होने का सबूत मिल रहा है।
4 साल की बेटी ने दिया पूरा साथ
रोजगार एवं प्रशिक्षण कौशल विकास तकनीकी शिक्षा की ट्रेनिंग आॅफिसर सुधा ठाकुर के लिए सबसे अनमोल रिश्ता मां और बच्चों का होता है। सुधा की पांच साल की एक बेटी है। सुधा का जॉब उस दौरान चैलेंजिंग हो गया जब उन्हें ट्रेनिंग के लिए 6 महीने कोलकाता में जाकर रहने पड़ा। उस वक्त उनकी बेटी प्रिशा मात्र 4 साल की थी।
सुधा आज भी जब वो दिन याद करती हैं तो उनके माथे में चिंता की तकीर आ जता है। बेटी को उनके पापा विक्रम संभालते थे। विक्रम का जॉब कंसल्टेंसी का काम है। सुधा के बिना बेटी को संभालना विक्रम के लिए बड़ा कठिन था पर प्रिशा ने बहुत समझदारी दिखाई। तब महसूस हुआ की पैरेंट्स बन कर बच्चे को संभालना और उसे बड़ा करना बहुत कठिन है। विक्रम बताते हैं, कई बारे ऐसा समय भी आया जब प्रिशा मम्मी की याद कर रात को ही कोलकाता जाने की बात करने लगती थी, उस वक्त लगता था कैसे ये दिन बीतेंगे और सुधा बेटी के साथ होगी।
सुधा ठाकुर, बेटी प्रिशा, पिता विक्रम