अभिनेता अजय देवगन की फिल्म ‘तानाजी द अनसंग वॉरियर’ जिस चीज के लिए पर याद की जाएगी, वह विजुअल इफेक्ट्स है। यह फिल्म बनाने वाली कंपनी एनवाई वीएफएक्स अजय देवगन की हैै। कोरोना की दूसरी लहर के बाद और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रिलीज की गई इसी कंपनी की फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ ने देशभक्ति, दिलेरी और धरती का दम दिखाने वाली एक अच्छी खासी कहानी का चार-चार पटकथा लेखकों के चलते पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया है। इस फिल्म की कहानी 1971 के इंडो-पाक वॉर के समय से शुरू होती है। इसमें ईस्ट और वेस्ट पाकिस्तान अलग-अलग हो गए हैं और पाकिस्तानी सेना, बंगाली मुसलमानों पर जुल्म कर रही हैं। पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान, भारत के भुज एयरबेस पर कब्जा करने और ईस्ट पाकिस्तान को हथियाने का प्लान बनाते हैं और भुज एयरबेस पर हमला करने के लिए अपने फाइटर जेट्स भेजते हैं। इस हमले में भुज एयरबेस को बड़ा नुकसान पहुंचा है, जिससे जल्द से जल्द उबरना बेहद जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तानी सेना कब्जा करने के लिए निकल चुकी है।
यह बात कम लोगों को ही पता होगा कि भुज की जिस हवाई पट्टी को रातों रात बनाकर भारतीय वायुसेना का विमान वहां उतारने के लिए भुज एयरबेस के इंचार्ज स्क्वॉड्रन लीडर विजय कार्णिक ने आसपास के गावों की महिलाओं की मदद ली थी, उसे पूरा गोबर से लीपा गया था, ताकि पाकिस्तानी विमानों को आसमान से नजर ना आ सके। हालांकि, फिल्म में ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया है और शुरू में इस बात का जिक्र भी है कि फिल्म ऐतिहासिक घटनाओं का वास्तविक चित्रण नहीं है।
फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ से अजय देवगन के फैंस को काफी उम्मीदें रही हैं, मगर यह फिल्म अच्छी नहीं है। पहली बात किसी फिल्म की कहानी इसके हीरो को सुनानी पड़े तो इससे पटकथा की कमजोरी साफ झलकती है। फिल्म के निर्देशक शुरू के चालीस मिनट तक तो समझ ही नहीं पाते कि फिल्म को किस करवट बिठाना है और इस चक्कर में फिल्म हाथ से निकल जाती है। भुज की हवाई पट्टी के जिस मूल कथानक पर फिल्म बनी है, वह आखिरी चालीस मिनट में है। उसके बाद भी फिल्म बचकानी लगती है।
फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ पहले शॉट से ही खराब वीएफएक्स के चलते दर्शकों पर अपनी पकड़ खो देती है। फिल्म अभिनय के लिहाज से भी अच्छी नहीं है। नोरा फतेही की भूमिका देखकर लगता है कि टी सीरीज ने फिल्म में पैसा सिर्फ इसी हिस्से के लिए लगाया है। वह आइटम नंबर के लिए तो ठीक हैं, लेकिन अभिनय उनके बस की बात अभी नहीं है। यही हाल प्रणिता सुभाष का है। मराठी हीरो के पंजाबी गाने में दिखी प्रणिता क्लाइमेक्स में रोलर चलाती दिखती हैं। इधर कुछ फिल्मों से अजय देवगन की पत्नियां बनने वाली नायिकाओं का फुटेज हिंदी सिनेमा में लगातार कम होता जा रहा है। ये एक शोध का विषय भी हो सकता है। सोनाक्षी सिन्हा ने फिल्म में अच्छा काम किया है। गुजराती बाला की बहादुरी दिखाने में भले उन्होंने नकली तेंदुआ परदे पर मारा हो, लेकिन उनके हावभाव तारीफ के काबिल हैं। शरद केलकर, संजय दत्त, महेश शेट्टी फिल्म में फिट हो गए। फिल्म में एमी विर्क ने एयरफोर्स पायलट के तौर पर काम किया है।
पूरी फिल्म पटकथा, अभिनय, निर्देशन, तकनीकी पक्ष के साथ संगीत में भी मात खाती है। एक तो 1971 के मराठी नायक पर पंजाबी गाना फिल्माकर ही निर्देशक ने बेडागर्क कर दिया। रही सही कसर पूरी कर दी है क्लाइमेक्स में बजने वाले इसके बेहद बचकाने गाने ने पूरी कर दी। यहां ‘हकीकत’ के गाने ‘कर चले फिदा जान ओ तन साथियों’ की नकल करने की कोशिश की गई। हां, गांवों की महिलाओं के सामने सुनाई गई कविता अच्छी है। फिल्म को कुल मिलाकर जो एक स्टार मिलता है वह है इसके हीरो अजय देवगन की बहादुरी के लिए कि अपने बेहतरीन दौर में उन्होंने सिर्फ देशभक्ति फिल्म के नाम पर ये फिल्म करने की हिम्मत जुटा ली। अपने हिस्से का काम भी उन्होंने बहुत बढ़िया किया है लेकिन दो घंटे से भी कम की ये फिल्म देखना किसी चुनौती से कम नहीं है।