- आज भी याद है कारगिर का युद्ध
- इंडियन एयर फोर्स में एक सेकंड की चूक भी मायने रखती है
- इंडियन एयरफोर्स डे पर खास खबर
रायपुर। एक सेकंड की चूक और बाजी दुश्मन के हाथ में, इस लिए हमें चौबिस घंटे चौकन्ने रहने की जरुरत है। ये कहना है इंडियन एयरफोर्स के फ्लाइट लेफ्टिनेंट गौतम पुरोहित का, जिन्होंने कारगिल के युद्ध के दौरान लेह और बिकानेर की पाकिस्तान बार्डर पर मोर्चा संभला था। इस जांबाज अफसर पर मिसाइल मेंटेन करने से लेकर उसे दागने तक का जिम्मा था। करीब डेढ माह तक चलने वाले उस युद्ध की तस्वीरें आज भी लेफ्टिनेंट गौतम की आंखों के सामने आ जाती हैं। जब उन्होंने हर पल देश के लिए जिया था और दुश्मनों को हरा कर वापस लौटे थे।
इंडियन एयरफोर्स डे में आईए जाने उस आॅफिसर (लेफटिनेंट गौतम पुरोहित)की कहानी जिन्होंने कारगिल वॉर में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। देश के लिए जीने वाले लेफ्टिनेंट गौतम की पहली प्राथमिकता देश की सेवा रही है। यही कारण है कि एनसीसी की शिक्षा के दौरान ही उन्होंने तय कर लिया था कि वह किसी ऐसी फील्ड में जाएंगे जहां देश की रक्षा के लिए वह अपना योगदान दे सकें। उन्होंने इंडियन एयर फोर्स ज्वाइन किया।
ज्वाइनिंग के बाद से लेफ्टिनेंट बनने तक का सफर बड़ा ही शानदार और हर पल नई सीख देने वाला रहा। गौतम बताते हैं कि एयर डिफेंस का काम इंडियन एयरफोर्स का होता है। हमारे वायु सीमा में अगर किसी भी दुश्मन का एयर क्राफ्ट, प्लेन आता दिखाई दे रहा है तो उसे ध्वस्त करना हमारी जिम्मेदारी होती है। वायु में सीमा की रक्षा करने के लिए हमेशा हर पल सजग रहना पड़ता है।
कारगिल युद्ध के दौरान रेडार, मिसाइल को बार्डर पर तैयार कर हम हर परिस्थति और चुनौतियों का समाना करने के लिए सज रहते थे। उस समय पाकिस्तान कभी भी हमला कर सकता था, इसलिए हमें अपनी पूरी तैयारी रखनी होती थी। इस दौरान लेफ्टीनेंट गौतम को मिसाइल का मेंटनेंस और उसे छोड़ने, रेडार के अंदर निगरानी रखना औैर एयरक्राफ्ट को मेंटेन करने की जिम्मेदारी भी दी गई थी। गौतम सरफेस वेयर मिलाइल के फ्लाइट के इंचार्ज के रूप में भी काम किए। वह बताते हैं कि मिसाइल को लौंचर के ऊपर रख कर हमेशा देखते रहते हैं कि दुश्मन का कोई भी जहाज हमारे तरफ तो नहीं आ रहा है, इसकी सावधानी और निगरानी रखी जाती है इसे ही एयर डिफेंस कहा जाता है। गौतम बताते हैं कि अपने करियर के दौरान उन्हें 2 से 3 बार मिसाइल दागने का मौका मिला, जो कि कभी नहीं भूला जा सकता।
परिवार वाले हमेंशा सपोर्ट किए लेफ्टिनेंट गौतम के इस
चुनौतीपूर्ण कार्य में हमेशा परिवार वालों का हमेशा सपोर्ट रहा इस लिए कठिन से कठिन सफर भी तय करने में आसानी हुई। वह बताते हैं कि हमेशा मम्मी पापा आगे बढ़ने की सीख देते थे। शादी के बाद पत्नी मीना ने भी हर कदम में साथ दिया। शादी राजधानी की मीना पुरोहित से हुई। कुछ सालों बाद ही उन्होें दिल्ली में पोस्टिंग के दौरान सन 1999 में कारगिल वॉर में शामिल होने के लिए लेह जाने का आर्डर मिला। सालों तक अपनी सेवाएं देने के बाद गौतम ने सन 2000 में रिटायरमेंट ले लिया।