छत्तीसगढ़ के आदिवासी विकास मंच ने वन अधिनियम 80 और 2006 में किए गए संशोधन पर विरोध करना शुरू कर दिया है। आदिवासी वर्ग 2022 में लाए गए नए अधिनियम पर विश्वास नहीं जता रहे है। इसका व्यापक विरोध भी 4 अगस्त के राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना के बाद नजर आने लगा है।
भूपेश सरकार ने वन अधिनियम में संशोधन करके समस्त व्यक्तिगत जमीन पर खड़े पेड़ या वृक्षारोपण को वन अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया है। इसे लेकर आदिवासी मंत्री अमरजीत भगत का कहना है कि इससे बड़े जमींदार जो हजारों एकड़ जमीन पर बैठे हैं। उन्हें लाभ होगा और वह बड़े पैमाने पर जल जंगल काट सकेंगे। उन्होंने आशंका जताई कि बस्तर में 1990 में मलिक मकबूजा कांड जैसी हालत पैदा हो गई है। नए कानून से वैसे ही हजारों कांड होंगे। प्राकृतिक जंगल भी नहीं बच पाएगा।
महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम वर्ष 1980 की धारा 2 में बदलाव कर जंगल को किसी भी प्राइवेट व्यक्ति कंपनी या संस्थाओं को लीज पर देने का रास्ता खोल दिया है। यह देश के आदिवासियों के साथ गद्दारी है जो आदिकाल से जंगल को सुरक्षित करते रहे हैं।