Ekhabri धर्मदर्शन, पूनम ऋतु सेन।प्राचीन ग्राम खल्लारी राजधानी रायपुर से 80km तथा जिला मुख्यालय से लगभग 22km दूर आरंग-खरियार सड़क मार्ग पर स्थित है। खल्लारी को प्राचीन काल में खल्लवाटिका के नाम से जाना जाता था, खल्लारी का एक मतलब खल्ल+अरी अर्थात दुष्टों का नाश करने वाली होता है।
ऐतिहासिक व धार्मिक संगम है खल्लारी
वर्तमान युग में खल्लारी का उल्लेख 15वीं सदी से ज्ञात होता है, जब रतनपुर राज्य दो भागों में बंटा तब इसकी एक राजधानी रतनपुर और दूसरे की राजधानी रायपुर में स्थापित थी। दोनों राज्यों में 18-18 गढ़ थे, खल्लारी स्थल उसी गढ़ों में रायपुर राज्य का एक गढ़ था। रायपुर के शासक ब्रह्मदेव का एक शिलालेख विक्रम संवत 1471 (19 जनवरी सन 1415) खल्लारी में प्राप्त हुआ है इससे ज्ञात होता है कि हैहयवंशों के कि शाखा में राजा सिंघण के बेटे रामचंद्र ने नागवंश के भोडिंगदेव को युद्ध में घायल किया था, रामचंद्र का पुत्र ब्रह्मदेव था जो शिव भक्त था, शिलालेख में अंकित है कि वह योद्धाओं के लिए यम के समान, याचकों के लिए कल्पवृक्ष के समान था। इसी शिलालेख के एक श्लोक में मोची देवपाल की वंशावली एवं दसवें श्लोक में उनके द्वारा नारायण का मंदिर निर्मित कराये जाने का उल्लेख मिलता है।
खल्लारी माता की प्रसिद्धि
खल्लारी ग्राम के पश्चिम में एक ऊंची पहाड़ी पर माता का मंदिर स्थित है। पहाड़ी के ऊपर दो विशाल प्रस्तर खंडों के बीच एक छोटी सी मढ़िया है, जिसमें खल्लारी माता की प्रस्तर निर्मित प्रतिमा स्थापित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए 981 सीढ़िया चढ़नी पड़ती है। इस मंदिर को छत्तीसगढ़ शासन ने राज्य संरक्षित इमारत का दर्जा दिया है यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है साथ ही चैत्र और शारदीय नवरात्र में मंदिर में ज्योति कलश की स्थापना की जाती है। इसके अतिरिक्त चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और इस अवसर पर तीन दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
खल्लारी मंदिर का इतिहास
खल्लारी का एक मतलब खल्ल+अरी अर्थात दुष्टों का नाश करने वाली होता है संभवतया इसी कारण देवी माता का नाम खल्लारी हुआ। ऐसा मानना है कि यहां का बाजार (हाट) काफी प्रसिद्ध था। देवी मां नवयुवती का रूप धारण कर बेमचा (महासमुंद) हाट में आया करती थी। मां के इस लावण्य रूप को देखकर एक बंजारा उन पर मोहित हो गया और मां का पीछा करने लगा, बार-बार चेतावानी के बाद भी जब वह नहीं माना तब देवी ने उसे श्राप देकर पत्थर का बना दिया जो आज भी गोड पत्थर के नाम से जाना जाता है।
इधर खल्लारी माता ने पाषाण रूप धारण कर पहाड़ को अपना निवास बना लिया और यहां के ग्रामीण को सपना देकर कहा कि मैं यहां के पहाड़ में पत्थरों के बीच निवाास करती हूं, तब उस ग्रामीण व्यक्ति ने ग्रामवासियों के साथ उस स्थान पर गए तो वहां देखा कि मां के पाषाण रूप में उनकी ऊंगली स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था तब से ग्रामवासियों ने वहां पूजा अर्चना प्रारंभ किया जो आज भी निरंतर जारी है।
क्षेत्र के लोग मां खल्लारी को अपना रक्षक मानते है। ऐसी मान्यता है कि प्राकृतिक विपदा के पूर्व माता पहाड़ी से आवाज देकर पूजारी को सजग कर दिया करती थी।