चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा रेवड़ियां बांटने की घोषणा और उन्हें बांटने पर रोक लगाने की मांग पर अब सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की नई पीठ सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों और कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग के मद्देनजर मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया। 2013 का फैसला दो न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया था जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों द्वारा रेवड़ियां बांटा जाना जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-123 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं है।
यह आदेश प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने दिए। जस्टिस रमणा सेवानिवृत्त हो रहे हैं, को प्रधान न्यायाधीश के तौर पर उनका सुप्रीम कोर्ट में अंतिम दिन था। पिछली सुनवाई पर ही कोर्ट ने 2013 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजने के संकेत दिए थे। कोर्ट ने कहा कि मामले पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। प्रधान न्यायाधीश के आदेश पर मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ में चार सप्ताह बाद सुनवाई पर लगाया जाए।
पीठ ने कहा कि कुछ मुद्दों को प्रारंभिक स्तर पर तय करने की आवश्यकता है, जैसे इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा क्या है। क्या अदालत द्वारा विशेषज्ञ समिति नियुक्ति करने से किसी उद्देश्य की पूर्ति होगी। इस मामले में मुख्य रूप से राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के दौरान किए जाने वाले वादों का मुद्दा उठाते हुए कहा गया है कि इसका राज्य की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है और इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने आदेश में कहा कि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि चुनावी लोकतंत्र में (जैसा हमारे यहां है) असली ताकत मतदाता के हाथ में होती है। मतदाता ही तय करते हैं कि कौन सा दल और उम्मीदवार सत्ता में आएगा। वे ही विधायिका का कार्यकाल खत्म होने के बाद अगले चुनाव में उस दल और उम्मीदवार के प्रदर्शन का आकलन करते हैं।
पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने राजनीतिक दलों की ओर से रखी गई दलीलों को देखते हुए केंद्र सरकार से कहा था कि यह एक गंभीर मुद्दा है और वह क्यों नहीं इस पर विचार के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाती और चर्चा करती। इस पर केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि पहले ही कई दलों ने कोर्ट में अर्जियां दाखिल कर रखी हैं और वे इस पर सुनवाई का विरोध कर रहे हैं, ऐसे में सर्वदलीय बैठक में कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है। कोर्ट को ही विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए जो सभी हितधारकों से विचार-विमर्श करके मामले में रिपोर्ट दे।