रायपुर। नाग पंचमी सावन का एक प्रचलित त्यौहार है। नाग नागिन की विशेष पूजा होती है और कच्चे दूध का भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन नाग नागिन की पूजा करने से कालसर्प योग और कई तरह के ग्रह दोषों से भी मुक्ति मिलती है। वैसे तो नाग पंचमी को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की आराधना के साथ अगर नाग देवता की भी आराधना इस दिन की जाए तो इससे बहुत ही शुभ फल मिलता है।
मान्यता के अनुसार अगर नाग नागिन के दर्शन नहीं हुए तो घर में कुछ लोग नाग नागिन की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं। इसकी पूजा से भी कई दोष समाप्त हो जाते हैं। नागपंचमी के दिन भगवान शिव की आराधना के साथ सर्पों को समर्पित होता है। इस दिनों सांपो को दूध से स्नान कराने की परंपरा है। तथा घर के द्वार में सर्प के प्रतीक चिन्ह भी बनाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है की नागदेवता की पूजा करने से सांपो की ओर से होने वाला किसी भी प्रकार का भय समाप्त होता है। यह दिन रुद्राभिषेक के लिए भी उत्तम माना जाता है, कई लोग इस दिन उपवास भी रखते हैं। आज हम जानेंगे की प्रतिवर्ष नाग पंचमी क्यों मनायी जाती है।
नागपंचमी को लेकर प्रचलित कथा
द्वापरयुग के अंत की समय की है। महाभारत के युद्ध के बाद अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित की सर्पदंश से मृत्यु हो गई थी। जिस पर उनके पुत्र यानि की अर्जुन के प्रपौत्र राजा जनमेजय ने नागों से बदला लेने के लिए सर्पसत्र यज्ञ शुरू कर दिया। यज्ञ के शुरू होते ही सभी सर्प उसमें आकर समाने लगें और अग्नि से भस्म होने लगे। नागों के अस्तित्व को मिटने से बचाने के ऋषि आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को रुकवाया था तथा संसार भर के सर्प जाती की रक्षा की थी। चूँकि यह दिन भी श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथी ही था। अतः नागों की रक्षा के उपलक्ष्य में इस दिन नागपंचमी मनाया जाने लगा। तथा आस्तिक मुनि ने अग्नि से जले हुए साँपों के ऊपर कच्चा दूध डालकर उन्हें शीतल किया था, अतः सर्पों को दूध भी अर्पित करने की परंपरा यहीं से प्रारम्भ हुई थी।